[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं और मेरी पत्नी रीति चुदाई का बहुत मज़ा ले रहे थे, सरजू का जिक्र होते ही रीति गर्म हो जाती थी और मैंने देखा कि उसकी बूर पानी से भर जाती थी, मुझे दांतों से काटने लगती और सिसकारी भी लेती। हालाकिं किसी दूसरे समय बात करता तो मुझ पर गुस्सा दिखाती।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]एक दिन जब गाड़ी रोकी तो देखा कि सरजू चने लेकर आया और उसने मेरी रीति की ओर का दरवाजा खोल कर चने रीति और मेरे हाथ में दिए, पहले वो खिड़की से ही देता था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कुछ नहीं कहा, वो रीति से काफी सटकर खड़ा था। अब वो दो-अर्थी भाषा में भी बोलने लगा और रीति को सीधा ही संबोद्धित करता, जैसे एक दिन बोल पड़ा- मेमसाब, मेरा चना आपके लिए स्पेशल तैयार किया है गरमा गरम दिखाऊँ क्या?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]यहाँ तक की कहानी आप पहले ही अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ चुके हैं। अब आगे :[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]हम सभी इसका मायने समझ रहे थे पर रीति ने अनजान होकर कहा- अभी नहीं कल दिखाना ! अभी भूख नहीं है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]दो या तीन दिन बाद हम फिर वहाँ गए, अब मेरी रीति भी इस अनुभव का बहुत मजे से आनंद लेने लगी थी। हम ध्यान रखते थे कि उसके ठेले पर जब भीड़ नहीं हो तभी वहाँ गाड़ी लगायें।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उस दिन रीति ने ब्रा नहीं पहनी, और ब्लाऊज़ के ऊपर के तीन हुक खोल लिए, मैंने गाड़ी रोकी तो सरजू नजदीक आया और रीति की ओर का दरवाजा खोला। हमने देखा कि उस समय उसने धोती सामने से चौड़ी कर ली थी थी और उसका नीले रंग का जांघिया साफ़ दिख रहा था, जिसके किनारे से उसने अपने लंड का आगे का हिस्सा निकाल रखा था और उसका सुपारा दीख रहा था, बिल्कुल लाल ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति ने साड़ी का पल्लू खिसकाया तो उसके दोनों स्तन ब्लाऊज़ के बाहर फूले से निकल पड़े, सरजू आँख फाड़ कर देखता रहा, रीति धीरे से मुस्कुराती रही और पूरे ही स्तनों को प्रदर्शित कर दिया, मुस्कुराते हुए पूछा- तुम्हारा गरम चना तैयार है तो क्यों नहीं खिलाते ? मैं भी देखूं कि कितना गर्म है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू को अब स्पष्ट इशारा मिल गया था। हम तीनों ही अब बेबाक हो गये थे। सरजू मेरी उपस्थिति से बेफिक्र था, मैं भी सेक्स और वासना के पीछे दीवाना हो गया था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू बोला- मेमसाब, आपके सामने ही है, आप खुद ही देख लीजिये ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]और उसने रीति के हाथों को पकड़ लिया और अपने जांघिये के पास लाकर अपने लंड को पकड़ा दिया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति सन्नाटे में थी, उसने ऐसा सोचा नहीं था कि गैर मर्द का लंड भी पकड़ लेगी। उसने हाथ हटा लिया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने हिम्मत देते हुए कहा- चना खाना है तो देखना तो होगा ही कैसा है, घबराओ नहीं ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति का गला सूख गया, उसकी आवाज नहीं निकल रही थी, हम लोग मजाक में ही बहुत आगे बढ़ चुके थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति ने कहा- घर चलो, फिर आयेंगे ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने सरजू से कहा- कल आएंगे और चल पड़े। सरजू थोड़ा उदास दिखा। कुछ दिन हम नहीं गए लेकिन अन्दर से रीति और मैं दोनों ही दोबारा ऐसा हो, ऐसा चाहते थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]एक दिन रीति से फिर कहा तो बोली- ठीक है, लेकिन मैं उसका लिंग नहीं पकडूंगी ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- ठीक है, लेकिन अगर वो तुम्हारे स्तन छूना चाहे या दबाये तो मना मत करना ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]देखूँगी ! कह कर वो तैयार हो गई। लौटते हुए हमने देखा कि सरजू के ठेले के पास कोई नहीं है। हम रुक गए, उसे अवाज़ दी तो वो आया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- आज चने नहीं खिलाओगे?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो सरजू बोला- आप नाराज हैं साब ! हम कैसे अपनी मर्जी से आपको और मेमसाब को चना खाने बोल सकते हैं? आपको चाहिए तो अभी ले कर आता हूँ।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने इशारा किया और सरजू चने लेने गया तो रीति से कहा- क्यों मुझे और उस बेचारे को तड़पाती हो?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]अन्दर से मन रीति का भी था, बिना बोले उसने अपने ब्लाऊज़ खोला और स्तनों को बाहर निकाला और पल्लू ढक कर बैठी रही। इसी बीच सरजू आया तो मैंने चने लिए और उससे कहा- मेमसाब को तुम्हारे चने अच्छे लगते हैं लेकिन डरती हैं कि ज्यादा लेने से नुक्सान होगा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू समझ रहा था, रीति का चेहरा लाल हो गया, वो शरमा रही थी, सरजू बोला- आप चिंता न करें साब, हम भी अच्छे लोग हैं आपकी इज्जत मेरी है, मेमसाब का मन नहीं तो उन्हें कुछ ना कहें लेकिन मेरे ठेले पर आते रहिएगा ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]कहकर रीति के गालों पर धीरे से हाथ लगाया और लौटने लगा, रीति जैसे पिघल गई, वो तैयार ही थी लेकिन उसे अन्दर की झिझक थी, उसने सरजू को आवाज़ दी- सुनो, तुम्हारे ये चने ठण्डे हैं, मुझे गर्म चने दो ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू वापस मुड़ा और आकर दरवाज़ा खोल रीति से सट कर खड़ा हो गया। रीति ने किनारे से साड़ी खिसकाई और पल्लू खींच अपने दोनों उभार उसे दिखाए। सरजू ने मेरी तरफ देखा तो और मुझे चुप-चाप देखता पाकर उसने धीरे से एक हाथ रीति के उरोजों पर रख कर हल्के से उठाया और दबा दिया, रीति ने पल्लू ऊपर कर अपने चूचो को ढक लिया, कुछ शर्म से और इसलिए कि किसी को अनायास दिखे नहीं ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मेरा हथियार दवाब से फटने को तैयार था, जैसे कि पैंट फाड़ कर बाहर निकल जायेगा। उधर रीति का पूरा शरीर थरथरा रहा था, वो बहुत धीमे आवाज़ में कुछ बड़बड़ा रही थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू झुका और पल्लू में सर घुसा कर रीति के चूचों को चूस लिया, रीति ने हलकी सिसकार मारकर उसका मुँह अपने चूचों से अलग किया। सरजू ने रीति की जांघों को हल्के से दबा दिया और उठ खड़ा हुआ।वो बहुत गर्म हो गई थी, मैंने सरजू से कहा- कल आयेंगे ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]और गाड़ी शुरू कर दी, उस रात खूब जमकर चुदाई हुई, रीति खुल कर सरजू की बातें कर रही थी और बहुत मजा ले रही थी। मुझे भी गजब का आनंद आ रहा था। हम दो दिन तक नहीं जा सके, रीति हर समय उसकी बातें करना चाहती थी, मुझे लगा कि अब उसे अपने पर कण्ट्रोल नहीं है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तीसरे दिन रीति शाम को तैयार थी, उसने अन्दर जिप वाली ब्रा और पेंटी पहनी थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]हम सरजू के ठेले पर पहुंचे तो वहाँ कुछ लोग थे, मैंने सरजू को इशारा किया हम थोड़ी देर में लौटते हुए आते हैं। वापस आने तक हम यही सोचते रहे कि क्या करना है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति अब सरजू के साथ मस्ती के लिए तो तैयार थी लेकिन एक सीमा के अन्दर ! सोचा जो होगा देखा जाएगा, सरजू के शरीर ने रीति को आकर्षित किया और जब एक सामाजिक दायरे के बाहर चोरी-चोरी किस्म का सेक्स होता है तो बहुत उत्तेजना होती है, और यहाँ तो मैं साथ था जिसके कारण रीति और ज्यादा उत्तेजित हो रही थी। मैं रीति को बहुत चाहता हूँ, सोचा कि एक बार इसकी ख़ुशी के लिए, हालाँकि मुझे भी उत्तेजना बहुत हो रही थी, आप कह सकते हैं हम बहक गए थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]हमने इस बार गाड़ी थोड़ी दूर एक दीवार के साथ खड़ी की जो रीति की ओर थी, बीच में बस थोड़ी जगह छोड़ दी कि दरवाजा खुल सके और एक आदमी खड़ा हो सके। यह जगह पहले से ज्यादा सुरक्षित थी, थोड़ा अँधेरा भी था, कोई जल्द देख नहीं सकता था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]गाड़ी देख सरजू मेरे पास आया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- मेमसाब को बहुत भूख लगी है, तुम्हारे पास क्या है उन्हें खिलाओ ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू हँसते हुए बोला- साहब, हम क्या खिलाएंगे, मेमसाब को देख कर अच्छे-अच्छे की भूख उड़ जायेगी ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]और वो रीति के दरवाज़े के पास आया, रीति ने खुद ही दरवाज़ा खोल दिया और बोली- पास आकर तो बताओ क्या है?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू रीति की ओर से हामी चाहता था, यह सुनते ही आगे आया और दीवार और दरवाज़े के बीच खड़ा होकर रीति की गर्दन पर हाथ रख झुक कर उसके वक्ष को चूम लिया, रीति ने हाथ पीछे कर उसकी कमर पर रख दिया और अपनी तरफ खींचा, वो लगभग रीति की गोद में आ गया, उसने जोर से रीति के होठों को चूमा और पूरा ब्लाऊज़ और ब्रा खींच कर ऊपर कर उसके स्तनों को दबाने लगा, साथ ही उसे चूम भी रहा था। एक मिनट बाद ही उसने रीति के हाथ पकड़ केर अपनी धोती में डाल दिया और रीति ने उसके तने हुए लंड को बाहर निकाल लिया, मैंने देखा कि मोटा बहुत था, काला, पर एकदम चिकना ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने सरजू से कहा- तुम पीछे की सीट पर आ जाओ, हम लोग थोड़ी देर में घूम कर आते हैं।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू ने ठेला एक लड़के को सम्भाला और वापस आ गया। मैं, रीति और सरजू वहाँ से कोई पन्द्रह मील दूर निकल गए, रास्ते में कई बार उसने रीति की चूचियों को चूमा और उसके साथ खिलवाड़ करता रहा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति अब भी शरमा रही थे, लेकिन उसे मजा भी आ रहा था, उसका चेहरा लाल और खुशी से भरा था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]स्त्रियाँ जब वासना के वशीभूत हो जाती है तो सब भूल जाती हैं, यह सच है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]करीब पन्द्रह मील दूर जाकर एक छोटा सा पुल है वहाँ से मैंने गाड़ी को सड़क से नीचे उतारा और कुछ दूर जाकर एक टीला और घनी झाड़ियाँ थी, उसके पीछे गाड़ी को खड़ा कर दिया। अब वहाँ ऊपर सड़क पर जाने आने वाला कोई हमें देख नहीं सकता था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने गाड़ी के अन्दर की एक छोटी लाइट जला दी, सरजू ने रास्ते में ही रीति का ब्लाऊज़ करीब करीब पूरा खोल दिया था। मैंने और रीति ने देखा कि सरजू की धोती भी अस्त व्यस्त होकर खुल गई थी, उसने जांघिया पहना हुआ था जो बहुत कसा था और एक लंगोट की तरह ही बंधा हुआ था। उसके लिंग की मोटाई ऊपर से ही मालूम हो रही थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने लाइट बंद की और पीछे का दरवाज़ा खोल रीति को बैठने के लिए कहा। वो पीछे की सीट पर आ गई और सरजू के बगल में बैठी, फिर मैं बैठा। अब वो हम दो पुरुषों के बीच थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं सरजू से बोला- मेरी रानी को आज दुनिया दिखा दे ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू रीति से लिपट गया, उसने रीति की साड़ी को ऊपर किया और उसके जांघों पर हाथ फेरने लगा। रीति का एक हाथ पकड़ अपने जांघिये पर रख दिया। मैं रीति की दूसरी जांघ सहला रहा था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू ने रीति के मुँह से मुँह सटा दिया और चूमने लगा। पहले तो रीति सकपकाई, फिर वो भी उसे चूम कर जवाब देने लगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने रीति की चूत को छुआ तो देखा सरजू अपने हाथ से पहले से ही उसे सहला रहा था। मैंने पैंटी की जिप खोल दी और अंगुली बुर में डाल हल्के-हल्के घर्षण करने लगा और उसकी बुर अंगुली से चोदने लगा। रीति अब जोर जोर से कमर हिला रही थी और उसकी बूर से तेज पानी निकल रहा था जैसे नाली से पानी बह रहा हो। बुर एकदम चिकनी हो गई थी। वो गरम हो सरजू के जांघिये को खींच रही थी, सरजू ने एक गाँठ खोली और जांघिया जैसे भरभराकर खुल गया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने उठ कर लाइट जला दी, रीति बेहाल थी, सरजू का लंड काला और बहुत मोटा था, इतना लम्बा तो नहीं पर छः इंच तो होगा ही, रीति उसे देखने लगी। रीति सरजू के लंड को खींच के अपने मुँह के पास ले गई और लंड की चमड़ी को एकदम पीछे कर दिया और लाल सुपारा देख कर हैरान सी हो गई। सुपारा पानी से लस लस था, उसने सुपारे को होठों से चूमा और हल्के से चूसा पर पूरी तरह से मुँह में नहीं लिया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने रीति की साड़ी खोल उसकी गांड के नीचे से सरका के अलग कर दिया। अब वो एक छोटी सी पेंटी में थी और उसकी भी जिप खुली हुई थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति की जांघ रोशनी में देख सरजू से रहा नहीं गया, वह जांघों के बीच मुँह डाल कर बूर को चाटने की कोशिश करने लगा। रीति ने उसकी पीठ पर हाथ लपेटा और उसके उसके मुँह को अपनी चूत की ओर कर उसका सर दबा दिया और जांघों को चौड़ा कर लिया। सरजू रीति की जिप के अन्दर जीभ और मुँह लगा कर उसकी बूर को काटने और चाटने लगा, रीति बहुत आवाज़ निकाल रही थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- धीरे बोलो ! कोई सुन लेगा ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति मेरे लंड को खींच रही थी, वो बड़बड़ाने लगी- तुम दोनों कुत्ते हो ! क्या मैं तुम लोगों की रंडी हूँ? मेरा भोसड़ा तुम लोग खा जाओ ! मेरी चूत को भोंसड़ा बनाओगे क्या ? वगैरह ऐसा बकने लगी।. रीति को चुदाई के समय मेरे साथ गन्दी बातें करना बहुत पसंद था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसने सरजू की शर्ट खींच कर उतार दी, अब सरजू गंजी में था और रीति के शरीर पर सिर्फ एक छोटी पैँटी थी, मैंने कहा- यह ठीक नहीं ! हम सबको नंगा होना चाहिए ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू को कहा- रीति की पेंटी खोल दे ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू ने मेरी पत्नी की गांड उठा कर पैन्टी निकाल दी और रीति ने उसकी गंजी उतार दी। अब वो दोनों पूरी तरह नंगे थे, रीति बोली- तुम क्यों नहीं अपना खोलते ? आज क्या शर्म आ रही है?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]और मेरी पैंट और अन्डरवीयर उतार दिया, मेरी शर्ट और गंजी भी उतार दी, हम तीनों ही मादरजात नंगे हो गए थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने रीति को हाथ पकड़ कर गाड़ी से नीचे उतारा और पीछे डिक्की के सहारे खड़ा कर दिया और सरजू से कहा- इसे चूस डाल जहाँ जहाँ तेरा मन है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू शरीर से बहुत ही आकर्षक था, उसकी जांघें तगड़ी थी और सुडौल शरीर था, उसके पंजे और हाथ मजबूत थे, लंड भी किसी स्त्री को लुभाने के लिए काफी था। यो तो लंड मेरा भी बराबर ही लम्बा था लेकिन सरजू के लंड में एक लचक थी, लटकता हुआ काला भयानक, अंडकोष छोटे थे इसलिए भी लंड बड़ा और ज्यादा आकर्षक लगता था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति ने उसे कमर से पकड़ अपने ऊपर गिरा लिया और उसके हाथ अपनी चूचियों पर डाल उसे चूमने लगी, सरजू स्तनों को मसल रहा था, उसका लंड रीति की योनि के पास दब रहा था, वो सूरज को जोर से कमर से पकड़ अपनी ओर दबा रही थी और उसके चिकने मजबूत जिस्म का मजा ले रही थी, उसके मुँह में मुँह डालकर खूब चूम रही थी, बार बार सरजू को कह रही थी- मैं तेरी रंडी हूँ, मुझे रोज लेकर आएगा ना ? मुझे जोर से चोद ! तू मेरी बूर का मालिक है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मेरी रीति आनंद की दुनिया में खोई हुई थी, रीति को आभास हुआ कि शायद वो मेरी ओर कम ध्यान दे रही है, उसने पलट कर सरजू को नीचे कर दिया डिक्की के सहारे और खुद को उसके ऊपर डाल दिया, मैंने पीछे से रीति को पकड़ा कमर से, उसके चूतड़ दबाने लगा और पीछे से उसकी बूर से अपना लंड सटा कर दबाया। वो दो दो लोगों के एक साथ दबाने पर चित्कार करने लगी। मेरा लंड गांड की तरफ से उसकी बूर पर था, मैंने थोड़ा धक्का मारा तो अन्दर थोड़ा सा सा घुस गया। मैंने धीरे चोट देनी शुरू की, सामने से सरजू ने उसकी चूचियाँ सीने से दबा रखी थी और चूम रहा था। मैं और सरजू दोनों रीति की कमर पकड़े हुए थे, सामने से सरजू का लंड रीति को योनि पर दबाव डाल कर आनंद दे रहा था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं चाहता था कि सरजू ही उस दिन पूरी तरह रीति को अन्दर तक पेल कर चुदाई का मजा दे और अपना वीर्य उसकी योनि में डाल दे, इसलिए मैं अपने लंड से उसे चोद कर ठंडा नहीं करना चाहता था, मैं सिर्फ रीति को छू कर, छेड़ कर और बातों से उत्तेजित कर रहा था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू की हालत ख़राब थी, वो नीचे बैठ गया, रीति ने हाथों से डिक्की का सहारा लिया और सरजू योनि के बराबर आकर अपने दोनों हाथों से बूर की पत्तियों को फैलाया और रीति की गांड को पकड़ उसकी चूत को अपने मुँह पर दबाकर चाटने लगा, उसने कई बार बूर की पत्तियों ( बूर के किनारे अन्दर की ओर की लाल दीवार, बूर के दरवाज़े का अन्दर का भाग) को जोर से काट डाला। इससे रीति चिल्लाने लगती थी। वो जांघो को भी चूम रहा था, काट रहा था और पागलों की तरह दीवाना हुआ जा रहा था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति की गालियाँ सुनकर सरजू भी बकने लगा, वो रीति को साली मादरचोद और छिनान कह रहा था। रीति ने उसे ऊपर उठाया और पकड़ कर गाड़ी के पिछले सीट पर धक्का दे दिया, सरजू सीट पर गिर गया, उसका विशालकाय लंड आसमान की तरफ मुँह करके खड़ा था, रीति उसके ऊपर गिर गई, रीति ने कई जगह सरजू को बुरी तरह से दांत से काटा, उसके कंधे पर गहरे दांत काटने के निशान बन गए थे, इतनी बुरी तरह कभी मुझे भी नहीं काटा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति के नितम्ब देखने जैसे थे, वो उन्हें बार बार उछाल रही थी, बड़े बड़े मांसल गुदाज और गोल तरबूजों की तरह, सरजू नीचे दबा था, रीति कह रही थी- मुझे तू चोदेगा? हिम्मत है ?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो उसे उकसा रही थी, वासना के ज्वार में बक रही थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]अभी बताता हूँ ! कह कर सरजू ने रीति की कमर को एक हाथ से से पकड़ा और दूसरे हाथ से लंड को पकड़ बूर के सुराख़ पर लगा जोर का धक्का दिया। एक ही धक्के में पूरा लंड बूर ने खा लिया। उसके बाद रीति जोरों से उस पर गांड उछालने लगी। थोड़ी देर में लंड डाले हुए ही सरजू पलट कर ऊपर आ गया, रीति को नीचे दबा कर वो जोर जोर से धक्के दे रहा था, दोनों पसीना पसीना थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं गाड़ी की रोशनी में देख रहा था, मैंने रीति से कहा- आज इस चुद्दकड़ को ठंडा करके बता ! सरजू को कहा- मेरी पत्नी अब तेरी भी है, इसकी चूत को फाड़ देगा तो इसे तेरे घर बैठा दूंगा ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]थोड़ी देर में दोनों चिल्ला रहे थे- आह आह ऊह ऊह ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू चिल्लाने लगा- मैं आ रहा हूँ, मेरा निकल रहा है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति भी बोली- जोर से दे ! मेरा भी अब हो रहा है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]और दोनों ही एक दूसरे को भींच कर धक्का दे रहे थे। कुछ ही देर में सरजू ने अपने लंड का वीर्य रीति की चूत के अन्दर डाल दिया और निढाल सा होकर उस पर पड़ गया। रीति भी आँख बंद कर पड़ी थी, मैंने तब तक अपना पानी मुठ मार कर निकाल लिया था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति ने सरजू को उठने को कहा, देखा उसकी बूर से वीर्य बह कर बाहर आ रहा था, सरजू निढाल सा सीट पर किनारे बैठ गया। रीति ने अपने लहंगे से सरजू के लंड को पौंछा और फिर अपनी बूर को पौंछ कर सीट के सहारे पीठ लगा कर आँख बंद कर बैठ गई।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]कोई कुछ नहीं बोल रहा था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]हमने कपड़े पहने और अपने साथ हम कॉफी ले गए थे, वो पी ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]घड़ी देखी तो रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, यानि हम करीब साढ़े तीन घंटे से सरजू के साथ थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]हम वापस शहर की तरफ चले, रास्ते में सभी चुप थे। मैंने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा- सोचने की बात नहीं, इसे एक आनंद-दाई रात समझो।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू को उसके घर से कुछ दूर उतारा, उसने उतरते समय रीति को हाथ से कंधे पर छुआ और मुझे सलाम कर के अपने घर की तरफ चल दिया ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसके बाद ऐसा कोई तीन चार बार और हुआ ! लेकिन रीति का सम्मोह थोड़े समय बाद खत्म हो गया, बाद में वो मना करने लगी, हम लोगों का जाना भी कम हो गया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू ने कभी भी इसका फायदा नहीं उठाया, ना ही उसने कोई दबाव डाला।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]कोई एक साल पहले सरजू भी वहाँ से चला गया, एक दो बार हम उससे मिले थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने देखा कि रीति का प्यार मेरे लिए बहुत ही बढ़ गया था, अब वो तीसरे आदमी के जिक्र से उत्तेजित नहीं होती ! शायद उसका मन भर गया लेकिन आज भी जब हम सम्भोग करते हैं तो वो वैसी ही हो जाती है जैसे पहले ! बल्कि उम्र बढ़ने के साथ उसकी सेक्स में रुचि और बढ़ गई है, लेकिन मेरे साथ ही ! अब वो तीसरे के नाम से दूर भागती है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]एक दिन जब गाड़ी रोकी तो देखा कि सरजू चने लेकर आया और उसने मेरी रीति की ओर का दरवाजा खोल कर चने रीति और मेरे हाथ में दिए, पहले वो खिड़की से ही देता था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कुछ नहीं कहा, वो रीति से काफी सटकर खड़ा था। अब वो दो-अर्थी भाषा में भी बोलने लगा और रीति को सीधा ही संबोद्धित करता, जैसे एक दिन बोल पड़ा- मेमसाब, मेरा चना आपके लिए स्पेशल तैयार किया है गरमा गरम दिखाऊँ क्या?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]यहाँ तक की कहानी आप पहले ही अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ चुके हैं। अब आगे :[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]हम सभी इसका मायने समझ रहे थे पर रीति ने अनजान होकर कहा- अभी नहीं कल दिखाना ! अभी भूख नहीं है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]दो या तीन दिन बाद हम फिर वहाँ गए, अब मेरी रीति भी इस अनुभव का बहुत मजे से आनंद लेने लगी थी। हम ध्यान रखते थे कि उसके ठेले पर जब भीड़ नहीं हो तभी वहाँ गाड़ी लगायें।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उस दिन रीति ने ब्रा नहीं पहनी, और ब्लाऊज़ के ऊपर के तीन हुक खोल लिए, मैंने गाड़ी रोकी तो सरजू नजदीक आया और रीति की ओर का दरवाजा खोला। हमने देखा कि उस समय उसने धोती सामने से चौड़ी कर ली थी थी और उसका नीले रंग का जांघिया साफ़ दिख रहा था, जिसके किनारे से उसने अपने लंड का आगे का हिस्सा निकाल रखा था और उसका सुपारा दीख रहा था, बिल्कुल लाल ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति ने साड़ी का पल्लू खिसकाया तो उसके दोनों स्तन ब्लाऊज़ के बाहर फूले से निकल पड़े, सरजू आँख फाड़ कर देखता रहा, रीति धीरे से मुस्कुराती रही और पूरे ही स्तनों को प्रदर्शित कर दिया, मुस्कुराते हुए पूछा- तुम्हारा गरम चना तैयार है तो क्यों नहीं खिलाते ? मैं भी देखूं कि कितना गर्म है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू को अब स्पष्ट इशारा मिल गया था। हम तीनों ही अब बेबाक हो गये थे। सरजू मेरी उपस्थिति से बेफिक्र था, मैं भी सेक्स और वासना के पीछे दीवाना हो गया था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू बोला- मेमसाब, आपके सामने ही है, आप खुद ही देख लीजिये ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]और उसने रीति के हाथों को पकड़ लिया और अपने जांघिये के पास लाकर अपने लंड को पकड़ा दिया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति सन्नाटे में थी, उसने ऐसा सोचा नहीं था कि गैर मर्द का लंड भी पकड़ लेगी। उसने हाथ हटा लिया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने हिम्मत देते हुए कहा- चना खाना है तो देखना तो होगा ही कैसा है, घबराओ नहीं ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति का गला सूख गया, उसकी आवाज नहीं निकल रही थी, हम लोग मजाक में ही बहुत आगे बढ़ चुके थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति ने कहा- घर चलो, फिर आयेंगे ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने सरजू से कहा- कल आएंगे और चल पड़े। सरजू थोड़ा उदास दिखा। कुछ दिन हम नहीं गए लेकिन अन्दर से रीति और मैं दोनों ही दोबारा ऐसा हो, ऐसा चाहते थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]एक दिन रीति से फिर कहा तो बोली- ठीक है, लेकिन मैं उसका लिंग नहीं पकडूंगी ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- ठीक है, लेकिन अगर वो तुम्हारे स्तन छूना चाहे या दबाये तो मना मत करना ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]देखूँगी ! कह कर वो तैयार हो गई। लौटते हुए हमने देखा कि सरजू के ठेले के पास कोई नहीं है। हम रुक गए, उसे अवाज़ दी तो वो आया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- आज चने नहीं खिलाओगे?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो सरजू बोला- आप नाराज हैं साब ! हम कैसे अपनी मर्जी से आपको और मेमसाब को चना खाने बोल सकते हैं? आपको चाहिए तो अभी ले कर आता हूँ।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने इशारा किया और सरजू चने लेने गया तो रीति से कहा- क्यों मुझे और उस बेचारे को तड़पाती हो?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]अन्दर से मन रीति का भी था, बिना बोले उसने अपने ब्लाऊज़ खोला और स्तनों को बाहर निकाला और पल्लू ढक कर बैठी रही। इसी बीच सरजू आया तो मैंने चने लिए और उससे कहा- मेमसाब को तुम्हारे चने अच्छे लगते हैं लेकिन डरती हैं कि ज्यादा लेने से नुक्सान होगा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू समझ रहा था, रीति का चेहरा लाल हो गया, वो शरमा रही थी, सरजू बोला- आप चिंता न करें साब, हम भी अच्छे लोग हैं आपकी इज्जत मेरी है, मेमसाब का मन नहीं तो उन्हें कुछ ना कहें लेकिन मेरे ठेले पर आते रहिएगा ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]कहकर रीति के गालों पर धीरे से हाथ लगाया और लौटने लगा, रीति जैसे पिघल गई, वो तैयार ही थी लेकिन उसे अन्दर की झिझक थी, उसने सरजू को आवाज़ दी- सुनो, तुम्हारे ये चने ठण्डे हैं, मुझे गर्म चने दो ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू वापस मुड़ा और आकर दरवाज़ा खोल रीति से सट कर खड़ा हो गया। रीति ने किनारे से साड़ी खिसकाई और पल्लू खींच अपने दोनों उभार उसे दिखाए। सरजू ने मेरी तरफ देखा तो और मुझे चुप-चाप देखता पाकर उसने धीरे से एक हाथ रीति के उरोजों पर रख कर हल्के से उठाया और दबा दिया, रीति ने पल्लू ऊपर कर अपने चूचो को ढक लिया, कुछ शर्म से और इसलिए कि किसी को अनायास दिखे नहीं ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मेरा हथियार दवाब से फटने को तैयार था, जैसे कि पैंट फाड़ कर बाहर निकल जायेगा। उधर रीति का पूरा शरीर थरथरा रहा था, वो बहुत धीमे आवाज़ में कुछ बड़बड़ा रही थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू झुका और पल्लू में सर घुसा कर रीति के चूचों को चूस लिया, रीति ने हलकी सिसकार मारकर उसका मुँह अपने चूचों से अलग किया। सरजू ने रीति की जांघों को हल्के से दबा दिया और उठ खड़ा हुआ।वो बहुत गर्म हो गई थी, मैंने सरजू से कहा- कल आयेंगे ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]और गाड़ी शुरू कर दी, उस रात खूब जमकर चुदाई हुई, रीति खुल कर सरजू की बातें कर रही थी और बहुत मजा ले रही थी। मुझे भी गजब का आनंद आ रहा था। हम दो दिन तक नहीं जा सके, रीति हर समय उसकी बातें करना चाहती थी, मुझे लगा कि अब उसे अपने पर कण्ट्रोल नहीं है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तीसरे दिन रीति शाम को तैयार थी, उसने अन्दर जिप वाली ब्रा और पेंटी पहनी थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]हम सरजू के ठेले पर पहुंचे तो वहाँ कुछ लोग थे, मैंने सरजू को इशारा किया हम थोड़ी देर में लौटते हुए आते हैं। वापस आने तक हम यही सोचते रहे कि क्या करना है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति अब सरजू के साथ मस्ती के लिए तो तैयार थी लेकिन एक सीमा के अन्दर ! सोचा जो होगा देखा जाएगा, सरजू के शरीर ने रीति को आकर्षित किया और जब एक सामाजिक दायरे के बाहर चोरी-चोरी किस्म का सेक्स होता है तो बहुत उत्तेजना होती है, और यहाँ तो मैं साथ था जिसके कारण रीति और ज्यादा उत्तेजित हो रही थी। मैं रीति को बहुत चाहता हूँ, सोचा कि एक बार इसकी ख़ुशी के लिए, हालाँकि मुझे भी उत्तेजना बहुत हो रही थी, आप कह सकते हैं हम बहक गए थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]हमने इस बार गाड़ी थोड़ी दूर एक दीवार के साथ खड़ी की जो रीति की ओर थी, बीच में बस थोड़ी जगह छोड़ दी कि दरवाजा खुल सके और एक आदमी खड़ा हो सके। यह जगह पहले से ज्यादा सुरक्षित थी, थोड़ा अँधेरा भी था, कोई जल्द देख नहीं सकता था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]गाड़ी देख सरजू मेरे पास आया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- मेमसाब को बहुत भूख लगी है, तुम्हारे पास क्या है उन्हें खिलाओ ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू हँसते हुए बोला- साहब, हम क्या खिलाएंगे, मेमसाब को देख कर अच्छे-अच्छे की भूख उड़ जायेगी ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]और वो रीति के दरवाज़े के पास आया, रीति ने खुद ही दरवाज़ा खोल दिया और बोली- पास आकर तो बताओ क्या है?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू रीति की ओर से हामी चाहता था, यह सुनते ही आगे आया और दीवार और दरवाज़े के बीच खड़ा होकर रीति की गर्दन पर हाथ रख झुक कर उसके वक्ष को चूम लिया, रीति ने हाथ पीछे कर उसकी कमर पर रख दिया और अपनी तरफ खींचा, वो लगभग रीति की गोद में आ गया, उसने जोर से रीति के होठों को चूमा और पूरा ब्लाऊज़ और ब्रा खींच कर ऊपर कर उसके स्तनों को दबाने लगा, साथ ही उसे चूम भी रहा था। एक मिनट बाद ही उसने रीति के हाथ पकड़ केर अपनी धोती में डाल दिया और रीति ने उसके तने हुए लंड को बाहर निकाल लिया, मैंने देखा कि मोटा बहुत था, काला, पर एकदम चिकना ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने सरजू से कहा- तुम पीछे की सीट पर आ जाओ, हम लोग थोड़ी देर में घूम कर आते हैं।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू ने ठेला एक लड़के को सम्भाला और वापस आ गया। मैं, रीति और सरजू वहाँ से कोई पन्द्रह मील दूर निकल गए, रास्ते में कई बार उसने रीति की चूचियों को चूमा और उसके साथ खिलवाड़ करता रहा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति अब भी शरमा रही थे, लेकिन उसे मजा भी आ रहा था, उसका चेहरा लाल और खुशी से भरा था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]स्त्रियाँ जब वासना के वशीभूत हो जाती है तो सब भूल जाती हैं, यह सच है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]करीब पन्द्रह मील दूर जाकर एक छोटा सा पुल है वहाँ से मैंने गाड़ी को सड़क से नीचे उतारा और कुछ दूर जाकर एक टीला और घनी झाड़ियाँ थी, उसके पीछे गाड़ी को खड़ा कर दिया। अब वहाँ ऊपर सड़क पर जाने आने वाला कोई हमें देख नहीं सकता था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने गाड़ी के अन्दर की एक छोटी लाइट जला दी, सरजू ने रास्ते में ही रीति का ब्लाऊज़ करीब करीब पूरा खोल दिया था। मैंने और रीति ने देखा कि सरजू की धोती भी अस्त व्यस्त होकर खुल गई थी, उसने जांघिया पहना हुआ था जो बहुत कसा था और एक लंगोट की तरह ही बंधा हुआ था। उसके लिंग की मोटाई ऊपर से ही मालूम हो रही थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने लाइट बंद की और पीछे का दरवाज़ा खोल रीति को बैठने के लिए कहा। वो पीछे की सीट पर आ गई और सरजू के बगल में बैठी, फिर मैं बैठा। अब वो हम दो पुरुषों के बीच थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं सरजू से बोला- मेरी रानी को आज दुनिया दिखा दे ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू रीति से लिपट गया, उसने रीति की साड़ी को ऊपर किया और उसके जांघों पर हाथ फेरने लगा। रीति का एक हाथ पकड़ अपने जांघिये पर रख दिया। मैं रीति की दूसरी जांघ सहला रहा था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू ने रीति के मुँह से मुँह सटा दिया और चूमने लगा। पहले तो रीति सकपकाई, फिर वो भी उसे चूम कर जवाब देने लगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने रीति की चूत को छुआ तो देखा सरजू अपने हाथ से पहले से ही उसे सहला रहा था। मैंने पैंटी की जिप खोल दी और अंगुली बुर में डाल हल्के-हल्के घर्षण करने लगा और उसकी बुर अंगुली से चोदने लगा। रीति अब जोर जोर से कमर हिला रही थी और उसकी बूर से तेज पानी निकल रहा था जैसे नाली से पानी बह रहा हो। बुर एकदम चिकनी हो गई थी। वो गरम हो सरजू के जांघिये को खींच रही थी, सरजू ने एक गाँठ खोली और जांघिया जैसे भरभराकर खुल गया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने उठ कर लाइट जला दी, रीति बेहाल थी, सरजू का लंड काला और बहुत मोटा था, इतना लम्बा तो नहीं पर छः इंच तो होगा ही, रीति उसे देखने लगी। रीति सरजू के लंड को खींच के अपने मुँह के पास ले गई और लंड की चमड़ी को एकदम पीछे कर दिया और लाल सुपारा देख कर हैरान सी हो गई। सुपारा पानी से लस लस था, उसने सुपारे को होठों से चूमा और हल्के से चूसा पर पूरी तरह से मुँह में नहीं लिया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने रीति की साड़ी खोल उसकी गांड के नीचे से सरका के अलग कर दिया। अब वो एक छोटी सी पेंटी में थी और उसकी भी जिप खुली हुई थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति की जांघ रोशनी में देख सरजू से रहा नहीं गया, वह जांघों के बीच मुँह डाल कर बूर को चाटने की कोशिश करने लगा। रीति ने उसकी पीठ पर हाथ लपेटा और उसके उसके मुँह को अपनी चूत की ओर कर उसका सर दबा दिया और जांघों को चौड़ा कर लिया। सरजू रीति की जिप के अन्दर जीभ और मुँह लगा कर उसकी बूर को काटने और चाटने लगा, रीति बहुत आवाज़ निकाल रही थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- धीरे बोलो ! कोई सुन लेगा ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति मेरे लंड को खींच रही थी, वो बड़बड़ाने लगी- तुम दोनों कुत्ते हो ! क्या मैं तुम लोगों की रंडी हूँ? मेरा भोसड़ा तुम लोग खा जाओ ! मेरी चूत को भोंसड़ा बनाओगे क्या ? वगैरह ऐसा बकने लगी।. रीति को चुदाई के समय मेरे साथ गन्दी बातें करना बहुत पसंद था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसने सरजू की शर्ट खींच कर उतार दी, अब सरजू गंजी में था और रीति के शरीर पर सिर्फ एक छोटी पैँटी थी, मैंने कहा- यह ठीक नहीं ! हम सबको नंगा होना चाहिए ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू को कहा- रीति की पेंटी खोल दे ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू ने मेरी पत्नी की गांड उठा कर पैन्टी निकाल दी और रीति ने उसकी गंजी उतार दी। अब वो दोनों पूरी तरह नंगे थे, रीति बोली- तुम क्यों नहीं अपना खोलते ? आज क्या शर्म आ रही है?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]और मेरी पैंट और अन्डरवीयर उतार दिया, मेरी शर्ट और गंजी भी उतार दी, हम तीनों ही मादरजात नंगे हो गए थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने रीति को हाथ पकड़ कर गाड़ी से नीचे उतारा और पीछे डिक्की के सहारे खड़ा कर दिया और सरजू से कहा- इसे चूस डाल जहाँ जहाँ तेरा मन है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू शरीर से बहुत ही आकर्षक था, उसकी जांघें तगड़ी थी और सुडौल शरीर था, उसके पंजे और हाथ मजबूत थे, लंड भी किसी स्त्री को लुभाने के लिए काफी था। यो तो लंड मेरा भी बराबर ही लम्बा था लेकिन सरजू के लंड में एक लचक थी, लटकता हुआ काला भयानक, अंडकोष छोटे थे इसलिए भी लंड बड़ा और ज्यादा आकर्षक लगता था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति ने उसे कमर से पकड़ अपने ऊपर गिरा लिया और उसके हाथ अपनी चूचियों पर डाल उसे चूमने लगी, सरजू स्तनों को मसल रहा था, उसका लंड रीति की योनि के पास दब रहा था, वो सूरज को जोर से कमर से पकड़ अपनी ओर दबा रही थी और उसके चिकने मजबूत जिस्म का मजा ले रही थी, उसके मुँह में मुँह डालकर खूब चूम रही थी, बार बार सरजू को कह रही थी- मैं तेरी रंडी हूँ, मुझे रोज लेकर आएगा ना ? मुझे जोर से चोद ! तू मेरी बूर का मालिक है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मेरी रीति आनंद की दुनिया में खोई हुई थी, रीति को आभास हुआ कि शायद वो मेरी ओर कम ध्यान दे रही है, उसने पलट कर सरजू को नीचे कर दिया डिक्की के सहारे और खुद को उसके ऊपर डाल दिया, मैंने पीछे से रीति को पकड़ा कमर से, उसके चूतड़ दबाने लगा और पीछे से उसकी बूर से अपना लंड सटा कर दबाया। वो दो दो लोगों के एक साथ दबाने पर चित्कार करने लगी। मेरा लंड गांड की तरफ से उसकी बूर पर था, मैंने थोड़ा धक्का मारा तो अन्दर थोड़ा सा सा घुस गया। मैंने धीरे चोट देनी शुरू की, सामने से सरजू ने उसकी चूचियाँ सीने से दबा रखी थी और चूम रहा था। मैं और सरजू दोनों रीति की कमर पकड़े हुए थे, सामने से सरजू का लंड रीति को योनि पर दबाव डाल कर आनंद दे रहा था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं चाहता था कि सरजू ही उस दिन पूरी तरह रीति को अन्दर तक पेल कर चुदाई का मजा दे और अपना वीर्य उसकी योनि में डाल दे, इसलिए मैं अपने लंड से उसे चोद कर ठंडा नहीं करना चाहता था, मैं सिर्फ रीति को छू कर, छेड़ कर और बातों से उत्तेजित कर रहा था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू की हालत ख़राब थी, वो नीचे बैठ गया, रीति ने हाथों से डिक्की का सहारा लिया और सरजू योनि के बराबर आकर अपने दोनों हाथों से बूर की पत्तियों को फैलाया और रीति की गांड को पकड़ उसकी चूत को अपने मुँह पर दबाकर चाटने लगा, उसने कई बार बूर की पत्तियों ( बूर के किनारे अन्दर की ओर की लाल दीवार, बूर के दरवाज़े का अन्दर का भाग) को जोर से काट डाला। इससे रीति चिल्लाने लगती थी। वो जांघो को भी चूम रहा था, काट रहा था और पागलों की तरह दीवाना हुआ जा रहा था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति की गालियाँ सुनकर सरजू भी बकने लगा, वो रीति को साली मादरचोद और छिनान कह रहा था। रीति ने उसे ऊपर उठाया और पकड़ कर गाड़ी के पिछले सीट पर धक्का दे दिया, सरजू सीट पर गिर गया, उसका विशालकाय लंड आसमान की तरफ मुँह करके खड़ा था, रीति उसके ऊपर गिर गई, रीति ने कई जगह सरजू को बुरी तरह से दांत से काटा, उसके कंधे पर गहरे दांत काटने के निशान बन गए थे, इतनी बुरी तरह कभी मुझे भी नहीं काटा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति के नितम्ब देखने जैसे थे, वो उन्हें बार बार उछाल रही थी, बड़े बड़े मांसल गुदाज और गोल तरबूजों की तरह, सरजू नीचे दबा था, रीति कह रही थी- मुझे तू चोदेगा? हिम्मत है ?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो उसे उकसा रही थी, वासना के ज्वार में बक रही थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]अभी बताता हूँ ! कह कर सरजू ने रीति की कमर को एक हाथ से से पकड़ा और दूसरे हाथ से लंड को पकड़ बूर के सुराख़ पर लगा जोर का धक्का दिया। एक ही धक्के में पूरा लंड बूर ने खा लिया। उसके बाद रीति जोरों से उस पर गांड उछालने लगी। थोड़ी देर में लंड डाले हुए ही सरजू पलट कर ऊपर आ गया, रीति को नीचे दबा कर वो जोर जोर से धक्के दे रहा था, दोनों पसीना पसीना थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं गाड़ी की रोशनी में देख रहा था, मैंने रीति से कहा- आज इस चुद्दकड़ को ठंडा करके बता ! सरजू को कहा- मेरी पत्नी अब तेरी भी है, इसकी चूत को फाड़ देगा तो इसे तेरे घर बैठा दूंगा ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]थोड़ी देर में दोनों चिल्ला रहे थे- आह आह ऊह ऊह ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू चिल्लाने लगा- मैं आ रहा हूँ, मेरा निकल रहा है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति भी बोली- जोर से दे ! मेरा भी अब हो रहा है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]और दोनों ही एक दूसरे को भींच कर धक्का दे रहे थे। कुछ ही देर में सरजू ने अपने लंड का वीर्य रीति की चूत के अन्दर डाल दिया और निढाल सा होकर उस पर पड़ गया। रीति भी आँख बंद कर पड़ी थी, मैंने तब तक अपना पानी मुठ मार कर निकाल लिया था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]रीति ने सरजू को उठने को कहा, देखा उसकी बूर से वीर्य बह कर बाहर आ रहा था, सरजू निढाल सा सीट पर किनारे बैठ गया। रीति ने अपने लहंगे से सरजू के लंड को पौंछा और फिर अपनी बूर को पौंछ कर सीट के सहारे पीठ लगा कर आँख बंद कर बैठ गई।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]कोई कुछ नहीं बोल रहा था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]हमने कपड़े पहने और अपने साथ हम कॉफी ले गए थे, वो पी ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]घड़ी देखी तो रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, यानि हम करीब साढ़े तीन घंटे से सरजू के साथ थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]हम वापस शहर की तरफ चले, रास्ते में सभी चुप थे। मैंने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा- सोचने की बात नहीं, इसे एक आनंद-दाई रात समझो।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू को उसके घर से कुछ दूर उतारा, उसने उतरते समय रीति को हाथ से कंधे पर छुआ और मुझे सलाम कर के अपने घर की तरफ चल दिया ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसके बाद ऐसा कोई तीन चार बार और हुआ ! लेकिन रीति का सम्मोह थोड़े समय बाद खत्म हो गया, बाद में वो मना करने लगी, हम लोगों का जाना भी कम हो गया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सरजू ने कभी भी इसका फायदा नहीं उठाया, ना ही उसने कोई दबाव डाला।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]कोई एक साल पहले सरजू भी वहाँ से चला गया, एक दो बार हम उससे मिले थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने देखा कि रीति का प्यार मेरे लिए बहुत ही बढ़ गया था, अब वो तीसरे आदमी के जिक्र से उत्तेजित नहीं होती ! शायद उसका मन भर गया लेकिन आज भी जब हम सम्भोग करते हैं तो वो वैसी ही हो जाती है जैसे पहले ! बल्कि उम्र बढ़ने के साथ उसकी सेक्स में रुचि और बढ़ गई है, लेकिन मेरे साथ ही ! अब वो तीसरे के नाम से दूर भागती है।[/font]