[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं एकदम चौंक पड़ी। अभी कुछ बोलती ही कि एक हाथ आकर मेरे मुँह पर बैठ गया। कान में कोई फुसफुसाया- जानेमन, मैं हूँ, सुरेश। कितनी देर से तुम्हारा इंतजार कर रहा था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं चुप ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सुरेश, वही स्मार्ट-सा छोरा जो लड़कियों के बहुत आगे पीछे कर रहा था। मैं दम साधे लेटी रही। कमरे के अंधेरे में वह मुझे स्वीटी समझ रहा है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]"मुझे यकीन था कि तुम आओगी। एक एक पल पहाड़ सा बीत रहा था तुम्हारे इंतजार में। तुमने मुझे कितना तड़पाया !"[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मेरा कलेजा जोरों से धड़क रहा था। कुछ बोलना चाहती थी मगर बोल नहीं फूट रहे थे। स्वीटी गुपचुप यह किसके साथ चक्कर चला रही है? मुझे तो वह कुछ बताती नहीं थी ! मेरे सामने तो वह बड़ी अबोध और कड़ी बनती थी। इस कमरे में आज उसे सोना था। मगर वह दूल्हे को देखने मंडप चली गई थी। मुझे नींद आ रही थी और रात ज्यादा हो रही थी। इसलिए उसके कमरे में आकर सो गई थी। चादर ढके बिस्तर पर दूसरा कौन सो रहा है देखा नहीं। सोचा कोई होगी। शादी के घर में कौन कहाँ सोएगा निश्चित नहीं रहता। अभी लेटी ही थी कि यह घटना ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]"स्वीटी जानेमन, तुम कितनी अच्छी हो जो आ गई।"[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसका हाथ अभी भी मेरा मुँह बंद किए था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]"आइ लव यू।" उसने मेरे कान में मुँह घुसाकर चूम लिया। चुंबन की आवाज सिर से पाँव तक पूरे बदन में गूँज गई। मैं बहरी-सी हो गई। कलेजा इतनी जोर धड़क रहा था कि उछलकर बाहर आ जाएगा। मन हो रहा था अभी ही उसे ठेलकर बाहर निकल जाऊँ। मगर डर और घबराहट के मारे चुपचाप लेटी रही।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वह मेरी चुप्पी को स्वीकृति समझ रहा था। उसका हाथ मेरे मुँह पर से हट गया। उसने अपनी चादर बढ़ाकर मुझे अंदर समेट लिया और अपने बदन से सटा लिया। उसके सीने पर मेरे दिल की घड़कन हथौड़े की तरह बजने लगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]"बाप रे कितनी जोर से धड़क रहा है।" उसने मानों खुद से ही कहा। मुझे आश्वस्त करने के लिए उसने मुझे और जोर से कस लिया- जानेमन आई लव यू, आई लव यू ! घबराओ मत।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मेरा मन कह रहा था- जूली, अभी समय है, छुड़ाओ खुद को और बाहर निकल जाओ। शोर मचा दो। तब यह समझेगा कि चुपचुप लड़की को छेड़ने का क्या नतीजा होता है। शादी अटेन्ड करने आया है या यह सब करने ?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मगर अब उससे जोर लगाकर छुड़ाने के लिए हिम्मत चाहिए थी। एक तरफ निकल जाने का मन हो रहा था दूसरी तरफ यह भी लग रहा था कि देखूँ आगे क्या करता है ! डर, घबराहट और उत्सुकता के मारे मैं जड़ हो रही।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसका हाथ मेरी पीठ पर घूम रहा था। गालों पर उसकी गर्म साँसें जल रही थीं। मुझे पहली बार किसी पुरुष की साँस की गंध लगी। वह मुझे अजीब सा लगी। हालाँकि उसमें कुछ भी नहीं था। पर वह मुझे वह बुरी भी नहीं लगी। वह मेरी किंकर्तव्यमूढ़ता का फायदा उठा रहा था और मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मैं कुछ कर क्यों नही रही। मुझे उसे तुरंत धक्का देकर बाहर निकल जाना चाहिए था और उसकी करतूत की अच्छी सजा देनी चाहिए।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने सोच लिया अब और नहीं रुकूंगी। मैं छूटने के लिए जोर लगाने लगी। अब चिल्लाने ही वाली थी ... कि तभी उसके होंठ ढूंढते हुए आकर मेरे मुँह पर जम गए। मैं कुछ बोलना चाह रही थी और वह मेरे खुलते मुँह में से मेरी साँसें खींचते मुझे चूम रहा था। मेरी ताकत ढीली पड़ने लगी। दम घुटने लगा। मुझे निकलना था मगर लग रहा था मैं उसकी गिरफ्त में आती जा रही हूँ। मेरे दोनों हाथ उसकी हाथों के नीचे दबे कमजोर पड़ने लगे। मैं छूटना चाहती थी मगर अवश हो रही थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसका हाथ पीछे मेरी पीठ पर ब्रा के फीते से खेल रहा था। कब उसने पीछे मेरे फ्रॉक की जिप खोल दी थी मुझे पता नहीं चला। उसका हाथ मेरी नंगी पीठ पर घूम रहा था और ब्रा के फीते को खींच रहा था। पहली बार पुरुष की हथेली का एक रूखा और ताकत भरा स्पर्श महसूस हुआ। मैं जड़ रहकर अपने को अप्रभावित रखना चाह रही थी मगर उसके घूमते हाथों का सहलाव और बदन पर बाँहों के बंधन का कसाव मुझे अलग रहने नहीं दे रहे थे। मुझे यह सब बहुत बुरा लग रहा था मगर अस्वीकार्य भी नहीं। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि कभी यह सब मैं अपने साथ होने दूंगी। मगर ...[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वह मेरे ब्रा के फीते को खोलने की कोशिश कर रहा था मगर हुक खुल नहीं रहा था। बेसब्र होकर उसने दोनों तरफ से पकड़कर जोर से झटके से खींच दिया। हुक टूट गया और फीते अलग हो गए। मुझे अपने बगलों और छाती पर ढीलेपन का, मुक्ति का एहसास हुआ। अभी तो वह बस पीठ छूकर ही पागल हो रहा था। आगे क्या होगा ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसके होंठ मेरे होंठों से उतरकर गले पर आ रहे थे। उसके सांसों की सोंधी गंध दूर चली गई। वह फ्राक को कंधों पर से छीलने की कोशिश कर रहा था। उसने मेरी एक बांह फ्राक से बाहर निकाल दी और उसे सिर के ऊपर उठाकर उस हाथ को ऊपर से सहलाते हुए नीचे उतरकर मेरे बगल को हथेली में भर लिया। गर्म और गीली काँख पर उसका भरा भरा कसाव मादक लग रहा था। मुझसे अलग रहा नहीं जा रहा था। पहली सफलता से उत्साहित होकर उसने मुझे बाँहों में लपेटे हुए ही थोड़ा दूसरे करवट पर लिया और थोड़ी कोशिश से फ्राक की दूसरी बाँह भी बाहर निकाल दी। मेरे दोनों हाथों को ऊपर उठाकर उसने अपने हाथों में बांध लिया और मेरे बगलों को चूमने लगा। उसके गर्म नमकीन पसीने को चूसने चाटने लगा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसकी इस हरकत पर मुझे घिन आई मगर मुझे गुदगुदी हो रही थी और नशा-सा भी आ रहा था। मुझे नहीं मालूम था कि बगलों का चूमना इतना मादक हो सकता है। मैंने हाथ छुड़ाने की कोशिश बंद कर दी। मेरी सासें तेज होने लगीं। वह खुशी से भर गया। उसे यकीन हो गया कि अब मैं विरोध नहीं करूंगी। उसने मुझे सहारा देकर बिठाया और फ्राक सिर के ऊपर खींच लिया। ब्रा मेरी छाती पर झूल गई। उसने उसके फीते कंधों पर से सरकाकर ब्रा को निकालना चाहा मगर मैंने स्तनों को हाथों से दबा लिया। हाथों पर ब्रा के नीचे मुझे अपनी चूचियों की चुभन महसूस हुई। मेरी चूचियाँ टाइट होकर होकर खड़ी हो गई थीं। मैं शर्म से गड़ गई।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसने मुझे धीरे धीरे लिटा दिया। मेरे हाथ छातियों पर दबे रहे। वह अब ऊपर से ही मेरे मेरे छातियों पर दबे हाथों को और ऊपर नीचे की खुली जगह को इधर से उधर से चूमने लगा। दबकर मेरे उभारों का निचला हिस्सा हाथों के नीचे थोड़ा बाहर निकल आया था। उसने उसमें हलके से दाँत गड़ा दिया। चुभन के दर्द के साथ एक गनगनाहट बदन में दौड़ गई और छातियों पर हाथों का दबाव ठहर नही सका। तभी उसने ब्रा नीचे से खीच ली और मेरे हाथों को सीधा कर दिया। अब मैं कमर के ऊपर बिल्कुल नंगी थी। गनीमत थी कि अंधेरा था और वह मुझे देख नहीं सकता था। उसके हाथ मेरी छातियों पर घूमने लगे। उसने चूचियों को चुटकी में लेकर हलके से मसल दिया। आह, ये क्या हो रहा था! यह सब इतना विह्वल कर देने वाला क्यों था! मैं कराह रही थी और वह फिर मुझे बार बार मुँह पर चूम रहा था। मुझे उसके होठों पर अपने बगलों के नमकीन पसीने का स्वाद आया। मैंने उसके होठों को चाट लिया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वह अब नीचे उतरा और मेरी एक चूची को मुँह में भरकर चूसने लगा। मैं गनगना उठी। एक क्षण के लिए वह एक बच्चे का सा खयाल मेरे मन में घूम गया और मैंने उसका सिर अपने स्तन पर दबा लिया। लग रहा था चूचियों से तरंगें उठकर सारे बदन में दौड़ रही हैं। वह कभी एक चुचूक को चूसता कभी दूसरे को। मुँह के हटते ही उस चुचूक पर ठंडक लगती और उसी समय दूसरी चूची पर गर्माहट और होंठों के कसाव का एहसास मिलता। मैं अपने जांघों को आपस में रगड़ने लगी। जोर से चलती सांसों से ऊपर नीचे होती मेरी छातियाँ मानों खुद ही उसे उठ उठकर बुला रही थीं।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]अब वह मेरी नाभि को चूम रहा था। मानो उसके छोटे से छेद के भीतर से किसी को बुला रहा हो। इच्छा हो रही थी वहीं से उसे अपने भीतर उतार लूँ। अपने बहुत भीतर, गर्भ के अंदर में सुरक्षित रख लूँ। मुझे एकाएक भीतर बहुत खाली सा लगा- आओ, मुझे भर दो।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसने बिना भय के मेरी सलवार की डोरी खींच ली और ढीली सलवार के भीतर हाथ डालकर मेरे फूले उभार को दबाने लगा। मेरी पैंटी गीली हो रही थी। उसने पैंटी के उपर से भीतर के कटाव को उंगलियों से ढूंढा और कटाव की लम्बाई पर उंगली रखकर भीतर दबा दिया। मैं सिहर उठी। बदन में बिजली की तरंगें दौड़ रही थीं। उसने पैंटी के भीतर हाथ घुसेड़ा और मेरे चिपचिपाते रस भरे कटाव में उंगली घुमाने लगा। उंगली घुमाते घुमाते उसने कटाव के शिखर पर सिहरती नन्ही कली को जोर से दबाकर मसल दिया। मैं ओह ओह कर हो उठी। मेरी वह कली उसकी उंगली के नीचे मछली सी बिछल रही थी। मैं अपने नितंब उचकाने लगी। उसने एक उंगली मेरी छेद के भीतर घुसा दी और एक से वह मेरी कली को दबाने लगा। छेद के अंदर की दीवारों को वह जोर जोर से सहला रहा था। अब उसकी हरकतों में कोमलता समाप्त होती जा रही थी। बदन पर चूँटियाँ रेंग रही थीं। लगता था तरंगों पर तरंगें उठा उठाकर मुझे उछाल रही हैं।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]योनि में उंगलियाँ चुभलाते हुए उसने दूसरे हाथ से मेरे उठते गिरते नितंबों के नीचे से सलवार खिसका दी। उसके बाद पैंटी को भी बारी बारी से कमर से दोनों तरफ से खिसकाते हुए नितम्बों से नीचे सरका दिया। उंगलियाँ मेरे अंदर लगातार चलाते हुए उसने मेरी पैंटी भी खींचकर टांगों से बाहर कर दी। कहाँ तो मैंने उसे अपने स्तन उघाड़ने नहीं दिया था कहाँ अब मैं खुद अपनी योनि खोलने में सहयोग दे रही थी। मैं चादर के भीतर मादरजाद नंगी थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]अब मुझे लग रहा था वह आएगा। मैं तैयार थी। मगर वह देरी करके मुझे तड़पा रहा था। वह मुझे चूमते हुए नीचे खिसक रहा था। नाभि से नीचे। कूल्हों की हडिडयों के बीच, नर्म मांस पर। वहाँ उसने हौले से दांत गड़ा दिए। मैं पागल हो रही थी। वह और नीचे खिसका। नीचे के बालों की शुरूआत पर।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]अरे उधर कहाँ। मैंने रोकना चाहा। मगर विरोध की सभावना कहां थी। सहना मुश्किल हो रहा था। वह उन बालों को चाट रहा था और बीच बीच में उन्हें मुँह में लेकर दांतों से खींच रहा था। फिर उसने पूरे उभार के मांस को ही मुँह फाड़कर भीतर लेते हुए उसमें दांत गड़ा दिये। मेरे मुंह से सिसकारी निकल गई। दर्द और पीड़ा की लहर एक साथ। ओह ओह। अरे यह क्या! मुझे कटाव के शिखर पर उसकी सरकती जीभ का एहसास हुआ। मैंने जांघों को सटाकर उसे रोकना चाहा। मगर वह मेरे विरोध की कमजोरी को जानता था। उसने कुछ जोर नहीं लगाया, सिर्फ ठहर गया। मैंने खुद ही अपनी टांगें फैला दी। वह मेरी फाँक को चाटने लगा। कभी वह उसे चूसता कभी चाटता। कभी जीभ की नोक नुकीली और कडी क़रके कटाव के अंदर घुसाकर ऊपर से नीचे तक जुताई करता। कभी जीभ सांप की तरह सरकती कभी दबा दबा कर अपनी खुरदरी सतह से रगड़ती।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसके तरकस में तीरों की कमी नहीं थी। पता नहीं किस किस तरह से वह मुझे पागल और उत्तेजित किए जा रहा था। अभी वो जीभ चौड़ी करके पूरे कटाव को ढकते हुए उसमें उतरकर चाट रहा था। मेरे दोनों तरफ के होंठ फैलकर संतरे की फांक की तरह फूल गए थे। वह उन्हें बारी बारी से मुँह में खींचकर चूस रहा था, उन पर अपने दांत गड़ा दिए। दांत का गड़ाव से दर्द और दर्द पर उमड़ती आनंद की लहर में मैं पछाड़ खाने लगी। मेरा रस बह बह कर निकल रहा था और वह उसके चूसते मुँह में उतर रहा था। उसने मेरे कटाव के ऊपर थरथराती नन्हीं कली को हांठों में कस लिया और चूसने लगा। उसे कभी वह दांतों से कभी होंठों से कुचलता। उसने उस कली को भीतर खींचकर चूसा और उसे दाँतो के बीच होठों से मसलने लगा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]आह आह आ: जा जा जा। मैं बांध की तरह फूट पड़ी। अब तक किसी जोर से रोक रखा झरना फूट पड़ा। सदियों से जमी हुई देह मानो धरती की तरह भूकंप में हिचकोले खाने लगी। उसने उंगलियों से खींच कर छेद को दोनों तरफ से फैला दिया और उसमें भीतर मुँह घोप कर चूस चूसकर मेरा रस खींचने लगा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]कुंआरी देह की पहली रस-धार। सूखी धरती पर पहली बारिश सी। वह योनि के भीतर जीभ घुसाकर घुमा घुमाकर चाट रहा था। मानों कहीं उस अनमोल रस की एक बूंद भी नहीं छोड़ना चाहता हो।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं अचेत सी हो गई।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]कुछ देर बाद जब मुझे होश आया तो मैंने अपने पर उसका वजन महसूस किया। मैंने हाथों से उसे टटोला। वह मुझ पर चढ़ा हुआ था। मेरी हाथों की हरकत से उसे मेरे होश में आने का पता चला। उसने मेरे मुँह पर अपने मुँह रख दिया। एक तीखी गंध मेरे नथुनों में भर गई। उसके होठों पर मेरा लिसलिसा रस लगा था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने खुद को चखा। एक अजीब सा स्वाद था- नमकीन, तीखा, बेहद चिकना। मैं उसकी गंध में डूब गई। उसने सराबोर होकर मुझे पिया था। कोई हिचक नहीं दिखाई थी कि उस जगह कैसे मुँह ले जाए। मेरा एक एक पोर उसके लिए प्यार के लायक था। एक कृतज्ञता से मैं भर उठी। मैंने खुद उसे विभोर होकर चूमा और उसके होठों को गालों को अगल बगल सभी को चाटकर साफ कर दिया। अंधेरे में मैंने खुद को उसके हवाले कर दिया था। मुझे कोई दुविधा नहीं थी। वह मुझे स्वीटी समझकर कर रहा था। मैं उसका आनंद बिना किसी डर के ले रही थी। मैंने उसे बाँहों में कस लिया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं चुप ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]सुरेश, वही स्मार्ट-सा छोरा जो लड़कियों के बहुत आगे पीछे कर रहा था। मैं दम साधे लेटी रही। कमरे के अंधेरे में वह मुझे स्वीटी समझ रहा है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]"मुझे यकीन था कि तुम आओगी। एक एक पल पहाड़ सा बीत रहा था तुम्हारे इंतजार में। तुमने मुझे कितना तड़पाया !"[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मेरा कलेजा जोरों से धड़क रहा था। कुछ बोलना चाहती थी मगर बोल नहीं फूट रहे थे। स्वीटी गुपचुप यह किसके साथ चक्कर चला रही है? मुझे तो वह कुछ बताती नहीं थी ! मेरे सामने तो वह बड़ी अबोध और कड़ी बनती थी। इस कमरे में आज उसे सोना था। मगर वह दूल्हे को देखने मंडप चली गई थी। मुझे नींद आ रही थी और रात ज्यादा हो रही थी। इसलिए उसके कमरे में आकर सो गई थी। चादर ढके बिस्तर पर दूसरा कौन सो रहा है देखा नहीं। सोचा कोई होगी। शादी के घर में कौन कहाँ सोएगा निश्चित नहीं रहता। अभी लेटी ही थी कि यह घटना ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]"स्वीटी जानेमन, तुम कितनी अच्छी हो जो आ गई।"[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसका हाथ अभी भी मेरा मुँह बंद किए था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]"आइ लव यू।" उसने मेरे कान में मुँह घुसाकर चूम लिया। चुंबन की आवाज सिर से पाँव तक पूरे बदन में गूँज गई। मैं बहरी-सी हो गई। कलेजा इतनी जोर धड़क रहा था कि उछलकर बाहर आ जाएगा। मन हो रहा था अभी ही उसे ठेलकर बाहर निकल जाऊँ। मगर डर और घबराहट के मारे चुपचाप लेटी रही।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वह मेरी चुप्पी को स्वीकृति समझ रहा था। उसका हाथ मेरे मुँह पर से हट गया। उसने अपनी चादर बढ़ाकर मुझे अंदर समेट लिया और अपने बदन से सटा लिया। उसके सीने पर मेरे दिल की घड़कन हथौड़े की तरह बजने लगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]"बाप रे कितनी जोर से धड़क रहा है।" उसने मानों खुद से ही कहा। मुझे आश्वस्त करने के लिए उसने मुझे और जोर से कस लिया- जानेमन आई लव यू, आई लव यू ! घबराओ मत।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मेरा मन कह रहा था- जूली, अभी समय है, छुड़ाओ खुद को और बाहर निकल जाओ। शोर मचा दो। तब यह समझेगा कि चुपचुप लड़की को छेड़ने का क्या नतीजा होता है। शादी अटेन्ड करने आया है या यह सब करने ?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मगर अब उससे जोर लगाकर छुड़ाने के लिए हिम्मत चाहिए थी। एक तरफ निकल जाने का मन हो रहा था दूसरी तरफ यह भी लग रहा था कि देखूँ आगे क्या करता है ! डर, घबराहट और उत्सुकता के मारे मैं जड़ हो रही।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसका हाथ मेरी पीठ पर घूम रहा था। गालों पर उसकी गर्म साँसें जल रही थीं। मुझे पहली बार किसी पुरुष की साँस की गंध लगी। वह मुझे अजीब सा लगी। हालाँकि उसमें कुछ भी नहीं था। पर वह मुझे वह बुरी भी नहीं लगी। वह मेरी किंकर्तव्यमूढ़ता का फायदा उठा रहा था और मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मैं कुछ कर क्यों नही रही। मुझे उसे तुरंत धक्का देकर बाहर निकल जाना चाहिए था और उसकी करतूत की अच्छी सजा देनी चाहिए।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने सोच लिया अब और नहीं रुकूंगी। मैं छूटने के लिए जोर लगाने लगी। अब चिल्लाने ही वाली थी ... कि तभी उसके होंठ ढूंढते हुए आकर मेरे मुँह पर जम गए। मैं कुछ बोलना चाह रही थी और वह मेरे खुलते मुँह में से मेरी साँसें खींचते मुझे चूम रहा था। मेरी ताकत ढीली पड़ने लगी। दम घुटने लगा। मुझे निकलना था मगर लग रहा था मैं उसकी गिरफ्त में आती जा रही हूँ। मेरे दोनों हाथ उसकी हाथों के नीचे दबे कमजोर पड़ने लगे। मैं छूटना चाहती थी मगर अवश हो रही थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसका हाथ पीछे मेरी पीठ पर ब्रा के फीते से खेल रहा था। कब उसने पीछे मेरे फ्रॉक की जिप खोल दी थी मुझे पता नहीं चला। उसका हाथ मेरी नंगी पीठ पर घूम रहा था और ब्रा के फीते को खींच रहा था। पहली बार पुरुष की हथेली का एक रूखा और ताकत भरा स्पर्श महसूस हुआ। मैं जड़ रहकर अपने को अप्रभावित रखना चाह रही थी मगर उसके घूमते हाथों का सहलाव और बदन पर बाँहों के बंधन का कसाव मुझे अलग रहने नहीं दे रहे थे। मुझे यह सब बहुत बुरा लग रहा था मगर अस्वीकार्य भी नहीं। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि कभी यह सब मैं अपने साथ होने दूंगी। मगर ...[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वह मेरे ब्रा के फीते को खोलने की कोशिश कर रहा था मगर हुक खुल नहीं रहा था। बेसब्र होकर उसने दोनों तरफ से पकड़कर जोर से झटके से खींच दिया। हुक टूट गया और फीते अलग हो गए। मुझे अपने बगलों और छाती पर ढीलेपन का, मुक्ति का एहसास हुआ। अभी तो वह बस पीठ छूकर ही पागल हो रहा था। आगे क्या होगा ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसके होंठ मेरे होंठों से उतरकर गले पर आ रहे थे। उसके सांसों की सोंधी गंध दूर चली गई। वह फ्राक को कंधों पर से छीलने की कोशिश कर रहा था। उसने मेरी एक बांह फ्राक से बाहर निकाल दी और उसे सिर के ऊपर उठाकर उस हाथ को ऊपर से सहलाते हुए नीचे उतरकर मेरे बगल को हथेली में भर लिया। गर्म और गीली काँख पर उसका भरा भरा कसाव मादक लग रहा था। मुझसे अलग रहा नहीं जा रहा था। पहली सफलता से उत्साहित होकर उसने मुझे बाँहों में लपेटे हुए ही थोड़ा दूसरे करवट पर लिया और थोड़ी कोशिश से फ्राक की दूसरी बाँह भी बाहर निकाल दी। मेरे दोनों हाथों को ऊपर उठाकर उसने अपने हाथों में बांध लिया और मेरे बगलों को चूमने लगा। उसके गर्म नमकीन पसीने को चूसने चाटने लगा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसकी इस हरकत पर मुझे घिन आई मगर मुझे गुदगुदी हो रही थी और नशा-सा भी आ रहा था। मुझे नहीं मालूम था कि बगलों का चूमना इतना मादक हो सकता है। मैंने हाथ छुड़ाने की कोशिश बंद कर दी। मेरी सासें तेज होने लगीं। वह खुशी से भर गया। उसे यकीन हो गया कि अब मैं विरोध नहीं करूंगी। उसने मुझे सहारा देकर बिठाया और फ्राक सिर के ऊपर खींच लिया। ब्रा मेरी छाती पर झूल गई। उसने उसके फीते कंधों पर से सरकाकर ब्रा को निकालना चाहा मगर मैंने स्तनों को हाथों से दबा लिया। हाथों पर ब्रा के नीचे मुझे अपनी चूचियों की चुभन महसूस हुई। मेरी चूचियाँ टाइट होकर होकर खड़ी हो गई थीं। मैं शर्म से गड़ गई।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसने मुझे धीरे धीरे लिटा दिया। मेरे हाथ छातियों पर दबे रहे। वह अब ऊपर से ही मेरे मेरे छातियों पर दबे हाथों को और ऊपर नीचे की खुली जगह को इधर से उधर से चूमने लगा। दबकर मेरे उभारों का निचला हिस्सा हाथों के नीचे थोड़ा बाहर निकल आया था। उसने उसमें हलके से दाँत गड़ा दिया। चुभन के दर्द के साथ एक गनगनाहट बदन में दौड़ गई और छातियों पर हाथों का दबाव ठहर नही सका। तभी उसने ब्रा नीचे से खीच ली और मेरे हाथों को सीधा कर दिया। अब मैं कमर के ऊपर बिल्कुल नंगी थी। गनीमत थी कि अंधेरा था और वह मुझे देख नहीं सकता था। उसके हाथ मेरी छातियों पर घूमने लगे। उसने चूचियों को चुटकी में लेकर हलके से मसल दिया। आह, ये क्या हो रहा था! यह सब इतना विह्वल कर देने वाला क्यों था! मैं कराह रही थी और वह फिर मुझे बार बार मुँह पर चूम रहा था। मुझे उसके होठों पर अपने बगलों के नमकीन पसीने का स्वाद आया। मैंने उसके होठों को चाट लिया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वह अब नीचे उतरा और मेरी एक चूची को मुँह में भरकर चूसने लगा। मैं गनगना उठी। एक क्षण के लिए वह एक बच्चे का सा खयाल मेरे मन में घूम गया और मैंने उसका सिर अपने स्तन पर दबा लिया। लग रहा था चूचियों से तरंगें उठकर सारे बदन में दौड़ रही हैं। वह कभी एक चुचूक को चूसता कभी दूसरे को। मुँह के हटते ही उस चुचूक पर ठंडक लगती और उसी समय दूसरी चूची पर गर्माहट और होंठों के कसाव का एहसास मिलता। मैं अपने जांघों को आपस में रगड़ने लगी। जोर से चलती सांसों से ऊपर नीचे होती मेरी छातियाँ मानों खुद ही उसे उठ उठकर बुला रही थीं।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]अब वह मेरी नाभि को चूम रहा था। मानो उसके छोटे से छेद के भीतर से किसी को बुला रहा हो। इच्छा हो रही थी वहीं से उसे अपने भीतर उतार लूँ। अपने बहुत भीतर, गर्भ के अंदर में सुरक्षित रख लूँ। मुझे एकाएक भीतर बहुत खाली सा लगा- आओ, मुझे भर दो।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसने बिना भय के मेरी सलवार की डोरी खींच ली और ढीली सलवार के भीतर हाथ डालकर मेरे फूले उभार को दबाने लगा। मेरी पैंटी गीली हो रही थी। उसने पैंटी के उपर से भीतर के कटाव को उंगलियों से ढूंढा और कटाव की लम्बाई पर उंगली रखकर भीतर दबा दिया। मैं सिहर उठी। बदन में बिजली की तरंगें दौड़ रही थीं। उसने पैंटी के भीतर हाथ घुसेड़ा और मेरे चिपचिपाते रस भरे कटाव में उंगली घुमाने लगा। उंगली घुमाते घुमाते उसने कटाव के शिखर पर सिहरती नन्ही कली को जोर से दबाकर मसल दिया। मैं ओह ओह कर हो उठी। मेरी वह कली उसकी उंगली के नीचे मछली सी बिछल रही थी। मैं अपने नितंब उचकाने लगी। उसने एक उंगली मेरी छेद के भीतर घुसा दी और एक से वह मेरी कली को दबाने लगा। छेद के अंदर की दीवारों को वह जोर जोर से सहला रहा था। अब उसकी हरकतों में कोमलता समाप्त होती जा रही थी। बदन पर चूँटियाँ रेंग रही थीं। लगता था तरंगों पर तरंगें उठा उठाकर मुझे उछाल रही हैं।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]योनि में उंगलियाँ चुभलाते हुए उसने दूसरे हाथ से मेरे उठते गिरते नितंबों के नीचे से सलवार खिसका दी। उसके बाद पैंटी को भी बारी बारी से कमर से दोनों तरफ से खिसकाते हुए नितम्बों से नीचे सरका दिया। उंगलियाँ मेरे अंदर लगातार चलाते हुए उसने मेरी पैंटी भी खींचकर टांगों से बाहर कर दी। कहाँ तो मैंने उसे अपने स्तन उघाड़ने नहीं दिया था कहाँ अब मैं खुद अपनी योनि खोलने में सहयोग दे रही थी। मैं चादर के भीतर मादरजाद नंगी थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]अब मुझे लग रहा था वह आएगा। मैं तैयार थी। मगर वह देरी करके मुझे तड़पा रहा था। वह मुझे चूमते हुए नीचे खिसक रहा था। नाभि से नीचे। कूल्हों की हडिडयों के बीच, नर्म मांस पर। वहाँ उसने हौले से दांत गड़ा दिए। मैं पागल हो रही थी। वह और नीचे खिसका। नीचे के बालों की शुरूआत पर।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]अरे उधर कहाँ। मैंने रोकना चाहा। मगर विरोध की सभावना कहां थी। सहना मुश्किल हो रहा था। वह उन बालों को चाट रहा था और बीच बीच में उन्हें मुँह में लेकर दांतों से खींच रहा था। फिर उसने पूरे उभार के मांस को ही मुँह फाड़कर भीतर लेते हुए उसमें दांत गड़ा दिये। मेरे मुंह से सिसकारी निकल गई। दर्द और पीड़ा की लहर एक साथ। ओह ओह। अरे यह क्या! मुझे कटाव के शिखर पर उसकी सरकती जीभ का एहसास हुआ। मैंने जांघों को सटाकर उसे रोकना चाहा। मगर वह मेरे विरोध की कमजोरी को जानता था। उसने कुछ जोर नहीं लगाया, सिर्फ ठहर गया। मैंने खुद ही अपनी टांगें फैला दी। वह मेरी फाँक को चाटने लगा। कभी वह उसे चूसता कभी चाटता। कभी जीभ की नोक नुकीली और कडी क़रके कटाव के अंदर घुसाकर ऊपर से नीचे तक जुताई करता। कभी जीभ सांप की तरह सरकती कभी दबा दबा कर अपनी खुरदरी सतह से रगड़ती।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसके तरकस में तीरों की कमी नहीं थी। पता नहीं किस किस तरह से वह मुझे पागल और उत्तेजित किए जा रहा था। अभी वो जीभ चौड़ी करके पूरे कटाव को ढकते हुए उसमें उतरकर चाट रहा था। मेरे दोनों तरफ के होंठ फैलकर संतरे की फांक की तरह फूल गए थे। वह उन्हें बारी बारी से मुँह में खींचकर चूस रहा था, उन पर अपने दांत गड़ा दिए। दांत का गड़ाव से दर्द और दर्द पर उमड़ती आनंद की लहर में मैं पछाड़ खाने लगी। मेरा रस बह बह कर निकल रहा था और वह उसके चूसते मुँह में उतर रहा था। उसने मेरे कटाव के ऊपर थरथराती नन्हीं कली को हांठों में कस लिया और चूसने लगा। उसे कभी वह दांतों से कभी होंठों से कुचलता। उसने उस कली को भीतर खींचकर चूसा और उसे दाँतो के बीच होठों से मसलने लगा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]आह आह आ: जा जा जा। मैं बांध की तरह फूट पड़ी। अब तक किसी जोर से रोक रखा झरना फूट पड़ा। सदियों से जमी हुई देह मानो धरती की तरह भूकंप में हिचकोले खाने लगी। उसने उंगलियों से खींच कर छेद को दोनों तरफ से फैला दिया और उसमें भीतर मुँह घोप कर चूस चूसकर मेरा रस खींचने लगा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]कुंआरी देह की पहली रस-धार। सूखी धरती पर पहली बारिश सी। वह योनि के भीतर जीभ घुसाकर घुमा घुमाकर चाट रहा था। मानों कहीं उस अनमोल रस की एक बूंद भी नहीं छोड़ना चाहता हो।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं अचेत सी हो गई।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]कुछ देर बाद जब मुझे होश आया तो मैंने अपने पर उसका वजन महसूस किया। मैंने हाथों से उसे टटोला। वह मुझ पर चढ़ा हुआ था। मेरी हाथों की हरकत से उसे मेरे होश में आने का पता चला। उसने मेरे मुँह पर अपने मुँह रख दिया। एक तीखी गंध मेरे नथुनों में भर गई। उसके होठों पर मेरा लिसलिसा रस लगा था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने खुद को चखा। एक अजीब सा स्वाद था- नमकीन, तीखा, बेहद चिकना। मैं उसकी गंध में डूब गई। उसने सराबोर होकर मुझे पिया था। कोई हिचक नहीं दिखाई थी कि उस जगह कैसे मुँह ले जाए। मेरा एक एक पोर उसके लिए प्यार के लायक था। एक कृतज्ञता से मैं भर उठी। मैंने खुद उसे विभोर होकर चूमा और उसके होठों को गालों को अगल बगल सभी को चाटकर साफ कर दिया। अंधेरे में मैंने खुद को उसके हवाले कर दिया था। मुझे कोई दुविधा नहीं थी। वह मुझे स्वीटी समझकर कर रहा था। मैं उसका आनंद बिना किसी डर के ले रही थी। मैंने उसे बाँहों में कस लिया।[/font]