[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]नमस्कार दोस्तों मैं एक बार फ़िर हाज़िर हूँ अपनी नई कहानी के साथ। मेरी पहली कहानी को आपने पसंद किया और मुझे ढेर सारे मेल भेजे जिसका मैं शुक्रिया अदा करता हूँ। तो लीजिये पेश है मेरी एक और कहानी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने अपने कैरियर की शुरुआत एक कम्प्यूटर अध्यापक के रूप में की थी। जिस संस्था में मैं पढ़ाता था उसमें एक बैच था जिसमें ज्यादातर विद्यार्थी कॉलेज में पढ़ते थे और मुझसे २-३ साल ही छोटे थे। उसी बैच में कुछ लड़कों के साथ दो खूबसूरत हसीन लडकियाँ भी थी, एक का नाम था शालिनी और दूसरी का रूपा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]शालिनी पढ़ने में रूपा से तेज़ थी और उसके मार्क्स भी ज्यादा आते थे। जब सेमेस्टर की परीक्षा होने वाली थी, उससे एक सप्ताह पहले मैंने उनकी क्लास खत्म की तो सब विद्यार्थी बाहर चले गए और मैं कक्षा में बैठा हुआ उनके बैच की टाइम-शीट भर रहा था। तभी रूपा क्लास में आई। मैंने पूछा- क्या हुआ? अभी घर नहीं गई?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो वो बोली- सर ! मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- बोलो ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो बोली- नहीं ! यहाँ नहीं, शाम को जब आप घर जायेंगे तो मैं नीचे आपसे मिलूंगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने पूछा कि बात क्या है बता दो, तो वो बोली कि नहीं शाम को ही बताऊँगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- ठीक है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]फिर वो चली गई और मैं अपना काम ख़त्म करके लैब में चला गया। शाम को जब घर जाने के लिए निकला तो एक कार मेरे पास आकर रुकी। उसमें रूपा बैठी थी। मैं उसकी बात को भूल चुका था उससे देखकर याद आया कि इसने मुझे शाम को मिलने की बात की थी। मैं भी कार में बैठ गया और वो ड्राइव करने लगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने उससे पूछा कि क्या बात करनी थी, अब बताओ।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो बोली- चलिए किसी काफ़ी शॉप में चलते हैं वहीं बताऊंगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]हम काफ़ी शॉप में गए और काफ़ी आर्डर कर दी तो वो बोली कि सर आप तो जानते हैं कि मैं और शालिनी बचपन के दोस्त हैं। वो मुझसे तेज़ है और हमेशा उसके नम्बर मुझसे ज्यादा आते हैं।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो मैंने कहा- इसमें कौन सी बड़ी बात है, थोड़ी मेहनत करो तो तुम्हारे मार्क्स भी अच्छे आएंगे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसने मेरा हाथ अपने दोनों हाथों में लिया और बोली कि सर अगर आप चाहो तो मेरे मार्क्स उससे अच्छे आ सकते हैं। मैं इसके लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ। उसने आखिरी शब्द इस तरह कहे कि मेरे बदन में झुरझुरी होने लगी। उसकी आंखों में कुछ ऐसा था कि मेरा मन डोलने लगा और पहली बार मैंने उसे दूसरी नज़रों से देखा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- अगर मैं तुम्हारी मदद कर दूँ तो मुझे क्या मिलेगा?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसने उसी अंदाज़ से कहा- सर ! आप जो मांगेंगे, मैं देने के लिए तैयार हूँ।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- सोच लो, कहीं मैंने कुछ माँगा और तुम न दे सकी तो?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो मेरे बगल में आकर बैठ गई और अपनी दोनों हथेलियाँ मेरी जाँघों पर रख दी और बोली- आप जो बोलोगे, मैं देने के लिए तैयार हूँ।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]बात दोनों की समझ में आ चुकी थी। हमने काफ़ी पी और फिर अपने अपने घर चले गए। जब परीक्षा हुई और मैंने कॉपी चेक की तो पाया कि शालिनी के मार्क्स ८२ थे और रूपा के ७५। मैंने रूपा के कुछ प्रश्नों में मार्क्स बढ़ा दिए और उसके मार्क्स ८४ कर दिए। जब रिजल्ट निकला तो रूपा बहुत खुश थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसने मुझे क्लास के बाद थैंक्स कहा तो मैंने कहा- अब पार्टी कब दे रही हो?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो वो बोली- सर ! कल आप मेरे साथ मेरे घर चलो, वहीँ पार्टी दूंगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]अगले दिन वो क्लास के बाद मुझे अपनी कार में अपने घर ले गई। घर तो नहीं कह सकते अच्छा खासा बंगला था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने पूछा- घर में कौन कौन है?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो वो बोली- पापा और मम्मी हैं, पर दोनों अक्सर पार्टी में व्यस्त रहते हैं। अभी सिर्फ़ ९-१० नौकर होंगे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो मुझे अपने कमरे में ले गई। मैं सोफे पे बैठ गया। उसने पीले रंग की सलवार कमीज़ पहन रखी थी, बाल खुले ही थे। उसने झुक कर मेरे दोनों घुटनों पे हाथ रख दिया और बोली- सर ! आपने मेरे बरसों की तमन्ना पूरी कर दी, बताइए, क्या लेंगे चाय या ठंडा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं उसकी कमर पे हाथ फिराने लगा और बोला- प्यास लगी है, पर चाय या ठंडे का मन नहीं है, कुछ और पिलाओ।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]फिर हम एक दूसरे की आंखों में देखने लगे और धीरे धीरे हमारे होंठ एक दूसरे की तरफ़ बढ़ने लगे। फिर हम धीरे धीरे एक दूसरे को किस करने लगे मैं उसे धीरे से अपनी तरफ़ खींचा तो वो मेरे जाँघों पे बैठ गई। और दोनों पैर सोफे पे रख लिए। अब उसके दोनों चूतड़ मेरी एक जांघ पर थे और जांघें दूसरी जांघ पर। वो अपनी साइड पे बैठी थी। हम एक दूसरे के होंठो को चूमने लगे। उन रसीले होठों को चूमते ही मुझे लगा जैसे मेरी बरसों की प्यास बुझ गई।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]धीरे धीरे हमारी किस गहरी होती गई और हमारी जीभ एक दूसरे के मुँह में घूमने लगी। मैंने अपना एक हाथ उसके स्तनों पे फ़िराना शुरू कर दिया, उसने एक हल्की सी सिसकारी ली। मैं धीरे धीरे उसकी चूचियाँ सहलाने लगा। उस एहसास का बयान मैं शब्दों में नहीं कर सकता। उफ्फ्फ क्या टाइट चूचियां थी। उसके दोनों हाथ मेरे बालों में फिर रहे थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]हमारा शरीर धीरे धीरे गर्म होने लगा और चूमते चूमते मैंने उसका दुपट्टा उतार के एक तरफ़ रख दिया। फिर धीरे से उसकी कमीज़ ऊपर कर दी। मेरा इशारा पाते ही उसने अपने बदन को ढीला छोड़ दिया और मैंने उसकी कमीज़ उतार के एक तरफ़ रख दी। फिर धीरे धीरे मेरे हाथ उसकी पीठ पर घूमने लगे। अब उसने मेरी टी शर्ट उतार दी। और हम वापस अपने चूमा चाटी मैं मशगूल हो गए। फिर मैंने पीठ पे हाथ फिराते फिराते उसकी ब्रा के हुक खोल दिए।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसकी चूचियां आजाद होकर बाहर आ गई और मैं उन्हें प्यार से मसलने लगा। दोस्तों आज भी उस पल को याद करता हूँ तो मेरा लण्ड खड़ा हो जाता है। दो बेहतरीन चूचियाँ मेरे हाथों में थी और एक मस्त गाण्ड मेरी जाँघों पर। खैर आगे बढ़ते हैं। तो मैं उसकी मस्त चूचियों को मसल रहा था और वोह मजे से सिस्कारियां ले रही थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]फिर उसने मेरी बनियान उतार दी। मैंने उसका एक पैर अपने दाहिनी तरफ़ और एक पैर अपने बायें तरफ़ कर लिया। उसका मुहँ मेरे तरफ़ था और हम अभी भी एक दूसरे को चूम रहे थे। मैंने एक हाथ से उसका नाड़ा खोल दिया और हाथ पीछे ले जाकर उसकी सलवार और पैंटी एक साथ उतार दी। उसने अपनी नाज़ुक बाहों का हार मेरे गले में डाल दिया और अपने होंठ मेरे कन्धों पर रख दिए। मैं भी उसके कन्धों पे प्यार करने लगा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मेरा लण्ड पैन्ट में मुझे परेशान करने लगा। करता भी क्यों ना। मैं एक हसीना के साथ मजे कर रहा था और उस बेचारे का पैन्ट में दम घुट रहा था। मैंने उसे थोड़ा ऊपर किया और अपनी पैन्ट उतार दी। उसने मेरा अंडरवियर भी उतार दिया और प्यार भरी नज़रों से मेरे लण्ड को देखने लगी। मेरा लण्ड भी अपनी किस्मत पे नाज करने लगा और मस्ती में सलामी देने लगा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने उसकी गाण्ड पकड़कर अपनी तरफ़ खींचा और हम दोनों घूमकर बैठ गए। अब उसका मुंह मेरी तरफ़ था, में अपने घुटनों पे बैठा था और उसकी गाण्ड सोफे पे नीचे लगी हुई थी। मैंने अपना लण्ड उसकी चिकनी चूत पे रखा तो वो मचलने लगी। मैं सोफे से नीचे आ गया और एक हथेली उसकी चूत पे फिराने लगा। वो मज़े से लम्बी लम्बी सिस्कारियां लेने लगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने उसकी चूत पे प्यार किया और धीरे धीरे उसे चूमने और चाटने लगा। फिर आहिस्ता से मैंने अपनी जीभ थोडी से चूत के अंदर डाली तो उसने मेरा सर पकड़ लिया और जोर से अपनी गाण्ड इधर उधर करने लगी। आज भी उस लम्हे को याद करता हूँ तो मेरे रोयें खड़े हो जाते हैं। उसके इस तरह मचलने से मेरा लण्ड और सख्त हो गया। फिर मैं उसकी चूत पे अपनी जीभ फिराने लगा और धीरे धीरे उसे किस करने लगा। थोड़ी देर में उसका बदन अकड़ने लगा और वो आह्ह्ह करते हुए झड़ गई।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने उसकी चूत को जीभ से साफ़ किया और सोफे के ऊपर बैठा तो वो बोली कि थोड़ा रुक जाओ, मैं थक गई हूँ।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- मेरा नहीं तो व कम से कम मेरे लण्ड का तो ख़याल करो, बेचारा कब से तड़प रहा है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो बोली- तड़पाओ मत ! लाओ मैं उसका मूड बनाती हूँ।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]इतना कहकर वो झुकी और मेरे लण्ड को प्यार करने लगी। फिर धीरे से उसने मेरे लण्ड को मुंह में ले लिया और उससे धीरे धीरे चूसने लगी। बीच बीच में उससे हलके से काट भी लेती थी। मेरा लण्ड इतनी मस्ती पाकर बेकाबू होता जा रहा था। चूसने से उसकी चूत वापस फूल की तरह खिल उठी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने उसके बाल पकड़कर ऊपर उठाया, अब हम दोनों अपने घुटनों पर थे। मैंने उससे चूमते हुए अपने लण्ड को उसकी चूत के द्वार पर टिका दिया। एक हल्का सा धक्का दिया पर उससे सिर्फ़ उसकी चूत के होंठ ही थोड़ा सा खुल पाया। मैंने उसकी गाण्ड पकड़कर एक जोर से धक्का मारा तो मेरा लण्ड आधा उसकी चूत में घुस गया। उसने हलकी सी सिसकारी ली और अपनी गर्दन पीछे के ओर फ़ेंक दी। मैंने गाण्ड पकड़े पकड़े एक ज़ोरदार धक्का मारा तो मेरा लण्ड उसकी चूत को फाड़ता हुआ उसकी नर्म मुलायम चूत में समां गया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]चूत बहुत कसी हुई थी और उसकी चीख निकल गई।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]बोली- थोड़ा आराम से करो, बहुत दर्द हो रहा है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसने मुझे कसकर पकड़ लिया। में थोड़ी देर रुका रहा, फिर मैंने उसके पैर उठाकर अपनी कमर पे लगा लिए। और ज़ोरदार धक्कों से उसकी चूत का मज़ा लेने लगा। थोड़ी देर ऐसे ही चोदने के बाद मैंने उसके दोनों पैर अपने दाहिनी तरफ़ कर दिए और धक्के जारी रखे। इस बीच वो २ बार झड़ चुकी थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]आख़िर मैं भी इंसान था! २-४ धक्के और लगाने के बाद मेरा लण्ड उसकी चूत में सावन के बादलों की तरह ज़ोरदार बारिश करता हुआ निढाल हो गया। मैंने उसकी चूत में से लण्ड निकाल लिया जिसे उसने चाटकर अच्छी तरह से साफ़ कर दिया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]अब वो मेरे गोद में सर रखकर लेट गई। में धीरे धीरे उसकी चूचियों को मसलता हुआ जब उसकी गाण्ड तक पहुँचा तो शरारत से बोली कि अभी नहीं। आखिरी सेमेस्टर के बाद ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]पर मैं कहाँ मानने वाला था, मैंने कहा- तुमने बोला था, जो मांगोगे वो दूंगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो वो बोली- अभी इतना कुछ दे तो दिया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- मैंने माँगा कब था ये तो तुमने अपनी खुशी से दिया है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो बोली- आप बड़े शरारती हो ! मानोगे नहीं ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- जब तुम जैसी हसीना गोद में बैठी हो तो किसी का भी मन डोल सकता है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो बोली- ऐसा क्या है मुझ में?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- इतनी प्यारा चेहरा, नशीली आंखें, गुलाबी होंठ, सुराहीदार गर्दन, रसीले चूचे, मस्त बदन, गदराई गाण्ड, रेशमी बाहें, और खूबसूरत चिकनी टांगें और कोई खुदा से क्या मांग सकता है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो खुश हो गई और लेटे लेटे ही मेरे लण्ड को प्यार करने लगी। अब मेरा लण्ड तो प्यार का ही भूखा है। प्यार पाते ही वापस सलामी देने लगा। इधर उसकी गाण्ड मसलने से वो भी गरम हो चुकी थी। फिर मैंने उससे कुतिया स्टाइल में किया और उसकी गाण्ड चाटने लगा। बहुत ही नर्म, मुलायम गाण्ड थी उसकी। चाटते हुए थूक लगाकर मैंने उसकी गाण्ड को गीला भी कर दिया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]फिर मैंने अपना लण्ड गाण्ड पे लगाया, कमर को पकड़ा और एक ज़ोरदार धक्के के साथ आधा उसकी गाण्ड में पेल दिया। वो चिल्ला उठी और उसकी आंखों से आँसू निकलने लगे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं थोड़ी देर रुका, जब उसका दर्द थोड़ा कम हुआ तो मैंने एक और ज़ोरदार धक्का लगाया, अब पूरा लण्ड उसकी गाण्ड में समां चुका था। बहुत टाइट गाण्ड थी, मेरे लण्ड में भी जलन होने लगी। मैं थोड़ी देर और रुका और फिर धीरे धीरे धक्के लगाने लगा। अब उससे भी मज़ा आने लगा। धीरे धीरे मेरे धक्के तेज़ होते जा रहे थे और थोड़ी देर के बाद मैं उसकी गाण्ड में झड़ गया। मेरे लण्ड की बारिश से उसकी गाण्ड भी तृप्त हो चुकी थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]इस जबरदस्त चुदाई के बाद हमने एक दूसरे को प्यार किया और फिर मैं अपने घर चला गया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]जिस दिन परिणाम निकला था उस दिन मैं सिर्फ़ रूपा की खुशी देखकर खुश हो रहा था और सोच रहा था कि कब इसको चोद सकूँगा। और इस बीच मैंने शालिनी की तरफ़ देखा भी नहीं, वो बेचारी मेरे इस व्यवहार से बहुत आहत हो गई थी, पर उस ओर मेरा ध्यान ही नहीं गया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]जब मैं अगले सेमेस्टर की क्लास लेने गया तो उसकी तरफ़ मेरी नज़र पड़ी। उससे नजरें मिलते ही मुझे अपने ऊपर थोड़ी शर्म आई। मैंने किसी तरह क्लास ख़त्म की। सब विद्यार्थी बाहर चले गए। थोड़ी देर में शालिनी रूम में आई और बोली- सर ! मुझे आपसे एक बात करनी है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]---?---?---?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो दोस्तों, कैसी लगी ये कहानी?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उम्मीद है, आपको पसंद आई होगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]या मेरी लेखन में किसी कमी को महसूस करें तो मुझे ज़रूर मेल करें। मैं आपके मेल का इंतज़ार करूँगा। जितने मेल आएंगे उतना ही अगली कहानी लिखने के बारे में मेरा उत्साह वर्धन होगा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने अपने कैरियर की शुरुआत एक कम्प्यूटर अध्यापक के रूप में की थी। जिस संस्था में मैं पढ़ाता था उसमें एक बैच था जिसमें ज्यादातर विद्यार्थी कॉलेज में पढ़ते थे और मुझसे २-३ साल ही छोटे थे। उसी बैच में कुछ लड़कों के साथ दो खूबसूरत हसीन लडकियाँ भी थी, एक का नाम था शालिनी और दूसरी का रूपा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]शालिनी पढ़ने में रूपा से तेज़ थी और उसके मार्क्स भी ज्यादा आते थे। जब सेमेस्टर की परीक्षा होने वाली थी, उससे एक सप्ताह पहले मैंने उनकी क्लास खत्म की तो सब विद्यार्थी बाहर चले गए और मैं कक्षा में बैठा हुआ उनके बैच की टाइम-शीट भर रहा था। तभी रूपा क्लास में आई। मैंने पूछा- क्या हुआ? अभी घर नहीं गई?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो वो बोली- सर ! मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- बोलो ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो बोली- नहीं ! यहाँ नहीं, शाम को जब आप घर जायेंगे तो मैं नीचे आपसे मिलूंगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने पूछा कि बात क्या है बता दो, तो वो बोली कि नहीं शाम को ही बताऊँगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- ठीक है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]फिर वो चली गई और मैं अपना काम ख़त्म करके लैब में चला गया। शाम को जब घर जाने के लिए निकला तो एक कार मेरे पास आकर रुकी। उसमें रूपा बैठी थी। मैं उसकी बात को भूल चुका था उससे देखकर याद आया कि इसने मुझे शाम को मिलने की बात की थी। मैं भी कार में बैठ गया और वो ड्राइव करने लगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने उससे पूछा कि क्या बात करनी थी, अब बताओ।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो बोली- चलिए किसी काफ़ी शॉप में चलते हैं वहीं बताऊंगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]हम काफ़ी शॉप में गए और काफ़ी आर्डर कर दी तो वो बोली कि सर आप तो जानते हैं कि मैं और शालिनी बचपन के दोस्त हैं। वो मुझसे तेज़ है और हमेशा उसके नम्बर मुझसे ज्यादा आते हैं।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो मैंने कहा- इसमें कौन सी बड़ी बात है, थोड़ी मेहनत करो तो तुम्हारे मार्क्स भी अच्छे आएंगे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसने मेरा हाथ अपने दोनों हाथों में लिया और बोली कि सर अगर आप चाहो तो मेरे मार्क्स उससे अच्छे आ सकते हैं। मैं इसके लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ। उसने आखिरी शब्द इस तरह कहे कि मेरे बदन में झुरझुरी होने लगी। उसकी आंखों में कुछ ऐसा था कि मेरा मन डोलने लगा और पहली बार मैंने उसे दूसरी नज़रों से देखा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- अगर मैं तुम्हारी मदद कर दूँ तो मुझे क्या मिलेगा?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसने उसी अंदाज़ से कहा- सर ! आप जो मांगेंगे, मैं देने के लिए तैयार हूँ।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- सोच लो, कहीं मैंने कुछ माँगा और तुम न दे सकी तो?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो मेरे बगल में आकर बैठ गई और अपनी दोनों हथेलियाँ मेरी जाँघों पर रख दी और बोली- आप जो बोलोगे, मैं देने के लिए तैयार हूँ।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]बात दोनों की समझ में आ चुकी थी। हमने काफ़ी पी और फिर अपने अपने घर चले गए। जब परीक्षा हुई और मैंने कॉपी चेक की तो पाया कि शालिनी के मार्क्स ८२ थे और रूपा के ७५। मैंने रूपा के कुछ प्रश्नों में मार्क्स बढ़ा दिए और उसके मार्क्स ८४ कर दिए। जब रिजल्ट निकला तो रूपा बहुत खुश थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसने मुझे क्लास के बाद थैंक्स कहा तो मैंने कहा- अब पार्टी कब दे रही हो?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो वो बोली- सर ! कल आप मेरे साथ मेरे घर चलो, वहीँ पार्टी दूंगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]अगले दिन वो क्लास के बाद मुझे अपनी कार में अपने घर ले गई। घर तो नहीं कह सकते अच्छा खासा बंगला था।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने पूछा- घर में कौन कौन है?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो वो बोली- पापा और मम्मी हैं, पर दोनों अक्सर पार्टी में व्यस्त रहते हैं। अभी सिर्फ़ ९-१० नौकर होंगे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो मुझे अपने कमरे में ले गई। मैं सोफे पे बैठ गया। उसने पीले रंग की सलवार कमीज़ पहन रखी थी, बाल खुले ही थे। उसने झुक कर मेरे दोनों घुटनों पे हाथ रख दिया और बोली- सर ! आपने मेरे बरसों की तमन्ना पूरी कर दी, बताइए, क्या लेंगे चाय या ठंडा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं उसकी कमर पे हाथ फिराने लगा और बोला- प्यास लगी है, पर चाय या ठंडे का मन नहीं है, कुछ और पिलाओ।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]फिर हम एक दूसरे की आंखों में देखने लगे और धीरे धीरे हमारे होंठ एक दूसरे की तरफ़ बढ़ने लगे। फिर हम धीरे धीरे एक दूसरे को किस करने लगे मैं उसे धीरे से अपनी तरफ़ खींचा तो वो मेरे जाँघों पे बैठ गई। और दोनों पैर सोफे पे रख लिए। अब उसके दोनों चूतड़ मेरी एक जांघ पर थे और जांघें दूसरी जांघ पर। वो अपनी साइड पे बैठी थी। हम एक दूसरे के होंठो को चूमने लगे। उन रसीले होठों को चूमते ही मुझे लगा जैसे मेरी बरसों की प्यास बुझ गई।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]धीरे धीरे हमारी किस गहरी होती गई और हमारी जीभ एक दूसरे के मुँह में घूमने लगी। मैंने अपना एक हाथ उसके स्तनों पे फ़िराना शुरू कर दिया, उसने एक हल्की सी सिसकारी ली। मैं धीरे धीरे उसकी चूचियाँ सहलाने लगा। उस एहसास का बयान मैं शब्दों में नहीं कर सकता। उफ्फ्फ क्या टाइट चूचियां थी। उसके दोनों हाथ मेरे बालों में फिर रहे थे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]हमारा शरीर धीरे धीरे गर्म होने लगा और चूमते चूमते मैंने उसका दुपट्टा उतार के एक तरफ़ रख दिया। फिर धीरे से उसकी कमीज़ ऊपर कर दी। मेरा इशारा पाते ही उसने अपने बदन को ढीला छोड़ दिया और मैंने उसकी कमीज़ उतार के एक तरफ़ रख दी। फिर धीरे धीरे मेरे हाथ उसकी पीठ पर घूमने लगे। अब उसने मेरी टी शर्ट उतार दी। और हम वापस अपने चूमा चाटी मैं मशगूल हो गए। फिर मैंने पीठ पे हाथ फिराते फिराते उसकी ब्रा के हुक खोल दिए।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसकी चूचियां आजाद होकर बाहर आ गई और मैं उन्हें प्यार से मसलने लगा। दोस्तों आज भी उस पल को याद करता हूँ तो मेरा लण्ड खड़ा हो जाता है। दो बेहतरीन चूचियाँ मेरे हाथों में थी और एक मस्त गाण्ड मेरी जाँघों पर। खैर आगे बढ़ते हैं। तो मैं उसकी मस्त चूचियों को मसल रहा था और वोह मजे से सिस्कारियां ले रही थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]फिर उसने मेरी बनियान उतार दी। मैंने उसका एक पैर अपने दाहिनी तरफ़ और एक पैर अपने बायें तरफ़ कर लिया। उसका मुहँ मेरे तरफ़ था और हम अभी भी एक दूसरे को चूम रहे थे। मैंने एक हाथ से उसका नाड़ा खोल दिया और हाथ पीछे ले जाकर उसकी सलवार और पैंटी एक साथ उतार दी। उसने अपनी नाज़ुक बाहों का हार मेरे गले में डाल दिया और अपने होंठ मेरे कन्धों पर रख दिए। मैं भी उसके कन्धों पे प्यार करने लगा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मेरा लण्ड पैन्ट में मुझे परेशान करने लगा। करता भी क्यों ना। मैं एक हसीना के साथ मजे कर रहा था और उस बेचारे का पैन्ट में दम घुट रहा था। मैंने उसे थोड़ा ऊपर किया और अपनी पैन्ट उतार दी। उसने मेरा अंडरवियर भी उतार दिया और प्यार भरी नज़रों से मेरे लण्ड को देखने लगी। मेरा लण्ड भी अपनी किस्मत पे नाज करने लगा और मस्ती में सलामी देने लगा।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने उसकी गाण्ड पकड़कर अपनी तरफ़ खींचा और हम दोनों घूमकर बैठ गए। अब उसका मुंह मेरी तरफ़ था, में अपने घुटनों पे बैठा था और उसकी गाण्ड सोफे पे नीचे लगी हुई थी। मैंने अपना लण्ड उसकी चिकनी चूत पे रखा तो वो मचलने लगी। मैं सोफे से नीचे आ गया और एक हथेली उसकी चूत पे फिराने लगा। वो मज़े से लम्बी लम्बी सिस्कारियां लेने लगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने उसकी चूत पे प्यार किया और धीरे धीरे उसे चूमने और चाटने लगा। फिर आहिस्ता से मैंने अपनी जीभ थोडी से चूत के अंदर डाली तो उसने मेरा सर पकड़ लिया और जोर से अपनी गाण्ड इधर उधर करने लगी। आज भी उस लम्हे को याद करता हूँ तो मेरे रोयें खड़े हो जाते हैं। उसके इस तरह मचलने से मेरा लण्ड और सख्त हो गया। फिर मैं उसकी चूत पे अपनी जीभ फिराने लगा और धीरे धीरे उसे किस करने लगा। थोड़ी देर में उसका बदन अकड़ने लगा और वो आह्ह्ह करते हुए झड़ गई।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने उसकी चूत को जीभ से साफ़ किया और सोफे के ऊपर बैठा तो वो बोली कि थोड़ा रुक जाओ, मैं थक गई हूँ।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- मेरा नहीं तो व कम से कम मेरे लण्ड का तो ख़याल करो, बेचारा कब से तड़प रहा है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो बोली- तड़पाओ मत ! लाओ मैं उसका मूड बनाती हूँ।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]इतना कहकर वो झुकी और मेरे लण्ड को प्यार करने लगी। फिर धीरे से उसने मेरे लण्ड को मुंह में ले लिया और उससे धीरे धीरे चूसने लगी। बीच बीच में उससे हलके से काट भी लेती थी। मेरा लण्ड इतनी मस्ती पाकर बेकाबू होता जा रहा था। चूसने से उसकी चूत वापस फूल की तरह खिल उठी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने उसके बाल पकड़कर ऊपर उठाया, अब हम दोनों अपने घुटनों पर थे। मैंने उससे चूमते हुए अपने लण्ड को उसकी चूत के द्वार पर टिका दिया। एक हल्का सा धक्का दिया पर उससे सिर्फ़ उसकी चूत के होंठ ही थोड़ा सा खुल पाया। मैंने उसकी गाण्ड पकड़कर एक जोर से धक्का मारा तो मेरा लण्ड आधा उसकी चूत में घुस गया। उसने हलकी सी सिसकारी ली और अपनी गर्दन पीछे के ओर फ़ेंक दी। मैंने गाण्ड पकड़े पकड़े एक ज़ोरदार धक्का मारा तो मेरा लण्ड उसकी चूत को फाड़ता हुआ उसकी नर्म मुलायम चूत में समां गया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]चूत बहुत कसी हुई थी और उसकी चीख निकल गई।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]बोली- थोड़ा आराम से करो, बहुत दर्द हो रहा है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसने मुझे कसकर पकड़ लिया। में थोड़ी देर रुका रहा, फिर मैंने उसके पैर उठाकर अपनी कमर पे लगा लिए। और ज़ोरदार धक्कों से उसकी चूत का मज़ा लेने लगा। थोड़ी देर ऐसे ही चोदने के बाद मैंने उसके दोनों पैर अपने दाहिनी तरफ़ कर दिए और धक्के जारी रखे। इस बीच वो २ बार झड़ चुकी थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]आख़िर मैं भी इंसान था! २-४ धक्के और लगाने के बाद मेरा लण्ड उसकी चूत में सावन के बादलों की तरह ज़ोरदार बारिश करता हुआ निढाल हो गया। मैंने उसकी चूत में से लण्ड निकाल लिया जिसे उसने चाटकर अच्छी तरह से साफ़ कर दिया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]अब वो मेरे गोद में सर रखकर लेट गई। में धीरे धीरे उसकी चूचियों को मसलता हुआ जब उसकी गाण्ड तक पहुँचा तो शरारत से बोली कि अभी नहीं। आखिरी सेमेस्टर के बाद ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]पर मैं कहाँ मानने वाला था, मैंने कहा- तुमने बोला था, जो मांगोगे वो दूंगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो वो बोली- अभी इतना कुछ दे तो दिया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- मैंने माँगा कब था ये तो तुमने अपनी खुशी से दिया है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो बोली- आप बड़े शरारती हो ! मानोगे नहीं ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- जब तुम जैसी हसीना गोद में बैठी हो तो किसी का भी मन डोल सकता है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो बोली- ऐसा क्या है मुझ में?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैंने कहा- इतनी प्यारा चेहरा, नशीली आंखें, गुलाबी होंठ, सुराहीदार गर्दन, रसीले चूचे, मस्त बदन, गदराई गाण्ड, रेशमी बाहें, और खूबसूरत चिकनी टांगें और कोई खुदा से क्या मांग सकता है।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]वो खुश हो गई और लेटे लेटे ही मेरे लण्ड को प्यार करने लगी। अब मेरा लण्ड तो प्यार का ही भूखा है। प्यार पाते ही वापस सलामी देने लगा। इधर उसकी गाण्ड मसलने से वो भी गरम हो चुकी थी। फिर मैंने उससे कुतिया स्टाइल में किया और उसकी गाण्ड चाटने लगा। बहुत ही नर्म, मुलायम गाण्ड थी उसकी। चाटते हुए थूक लगाकर मैंने उसकी गाण्ड को गीला भी कर दिया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]फिर मैंने अपना लण्ड गाण्ड पे लगाया, कमर को पकड़ा और एक ज़ोरदार धक्के के साथ आधा उसकी गाण्ड में पेल दिया। वो चिल्ला उठी और उसकी आंखों से आँसू निकलने लगे।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]मैं थोड़ी देर रुका, जब उसका दर्द थोड़ा कम हुआ तो मैंने एक और ज़ोरदार धक्का लगाया, अब पूरा लण्ड उसकी गाण्ड में समां चुका था। बहुत टाइट गाण्ड थी, मेरे लण्ड में भी जलन होने लगी। मैं थोड़ी देर और रुका और फिर धीरे धीरे धक्के लगाने लगा। अब उससे भी मज़ा आने लगा। धीरे धीरे मेरे धक्के तेज़ होते जा रहे थे और थोड़ी देर के बाद मैं उसकी गाण्ड में झड़ गया। मेरे लण्ड की बारिश से उसकी गाण्ड भी तृप्त हो चुकी थी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]इस जबरदस्त चुदाई के बाद हमने एक दूसरे को प्यार किया और फिर मैं अपने घर चला गया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]जिस दिन परिणाम निकला था उस दिन मैं सिर्फ़ रूपा की खुशी देखकर खुश हो रहा था और सोच रहा था कि कब इसको चोद सकूँगा। और इस बीच मैंने शालिनी की तरफ़ देखा भी नहीं, वो बेचारी मेरे इस व्यवहार से बहुत आहत हो गई थी, पर उस ओर मेरा ध्यान ही नहीं गया।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]जब मैं अगले सेमेस्टर की क्लास लेने गया तो उसकी तरफ़ मेरी नज़र पड़ी। उससे नजरें मिलते ही मुझे अपने ऊपर थोड़ी शर्म आई। मैंने किसी तरह क्लास ख़त्म की। सब विद्यार्थी बाहर चले गए। थोड़ी देर में शालिनी रूम में आई और बोली- सर ! मुझे आपसे एक बात करनी है ![/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]---?---?---?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]तो दोस्तों, कैसी लगी ये कहानी?[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उम्मीद है, आपको पसंद आई होगी।[/font]
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]या मेरी लेखन में किसी कमी को महसूस करें तो मुझे ज़रूर मेल करें। मैं आपके मेल का इंतज़ार करूँगा। जितने मेल आएंगे उतना ही अगली कहानी लिखने के बारे में मेरा उत्साह वर्धन होगा।[/font]